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लगता है कि यहाँ का वातावरण कलुषित हुआ है।"
"आचार्यजी की बात सही है। लेकिन उसका कारण वे हैं जिन्होंने श्रीवैष्णव पन्थ को नया-नया स्वीकार किया है।"
"तो महाराज भी इनमें सम्मिलित हैं क्या?"
"महाराज की बात आचार्यजी जानते हैं। पोय्सल राज्य में सभी मतावलम्बियों को समान गौरव देने की प्रथा चली आयी है। एक बार आप बल्लिगाँव के जयन्ती बौद्ध बिहार को देख आएँ, और उस बिहार का निर्माण करानेवाली बाप्पुरे नागियक्का की
क्ति के हिप में जानें, तो इसा में और ति समान आदरभाव है, यह स्पष्ट हो जाएगा। जिस तरह जैनों के लिए श्रवणबेलुगोल पवित्र तीर्थ है, उसी तरह बौद्धों के लिए बल्लिगाँधे है। बौद्ध इस क्षेत्र को दक्षिण का 'मृगदाव' बताते हैं।"
"उसी तरह इस दोरसमुद्र को शिवक्षेत्र बनाने की अभिलाषा है?"
"राजमहल की कोई अभिलाषा नहीं। भक्तों की अभिलाषा को मान्यता देनी है।"
"इसके लिए हम स्वयं ही साक्षी हैं न? याचक बनकर आये और हमें राजमहल की उदारता से एक अच्छा स्थान प्राप्त हुआ।"
"परन्तु अब जैन-श्रीवैष्णव को लेकर ऊँच-नीच की भावना बढ़ रही है, ऐसा दिखता है। आचार्यजी को इस सम्बन्ध में अपने शिष्यवृन्द का मार्गदर्शन करना चाहिए।"
"हमने सुना है जैन ही इस विषय में अग्रसर हो रहे हैं।"
"इस बारे में हमारे गुप्तचरों ने सभी जानकारी विस्तार के साथ प्राप्त की है। आपके समक्ष उन सभी विचारों को प्रकट करने का निश्चय भी हमने किया है।"
"हमें तो चेन्नकेशव के दर्शन एवं विजयोत्सव में भाग लेने के लिए बुलवाया था न?" ___ "हाँ, परन्तु यह प्रसंग अनिवार्य है। अभी इन गलत रास्ते पर जानेवालों को चेतावनी नहीं देंगे तो वह पकड़ में ही नहीं आएँगे। हम विश्वास करते हैं कि आचार्यजी राजमहल को अपना सहयोग देंगे।"
__ "लोग सन्मार्गी बनें, भगवान् पर विश्वास रखें। सन्मार्ग पर चलनेवालों का समाज ही सुखी समाज है। सुखी समाज के निर्माण के लिए हम सदा तैयार हैं। आचार्यजी ने कहा।
बिट्टिदेव प्रणाम कर वहाँ से चल पड़े। दूसरे ही दिन सम्पूर्ण राजपरिवार वेलापुरी की ओर दोपहर के बाद रवाना हुआ।
यगची नदी के तौर पर से ही स्वागत-मण्डप बनवाये गये थे। राजपरिवार के साथ ही आचार्यजी के पधारने के मुहूर्त की सूचना वेलापुरी भेज दी गयी थी, इसलिए लोग राजपथ के दोनों ओर भीड़ जमाये खड़े थे। वेलापुरी सज-धज के साथ जगमग
114 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार