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________________ 'नव-विवाहित दो रानियाँ दोनों पाश्र्वों में जब होंगी तो सन्निधान को इधर की सोचने के लिए मौका दे सकेंगी?" " इस विषय पर हम कुछ कहने में असमर्थ हैं। वास्तव में वे स्वयं इधर की बातों पर विचार करने के लिए क्षण-क्षण पर उकसाया करती थीं। दिन में कम से कम बीसियों बार में पट्टमहादेवी का स्मरण किये बिना न रहतीं। अपने जीवन को सार्थक बनानेवाली पुण्यमयी का स्मरण किये बिना से एक दिन भी नहीं गुजारतीं। ऐसी स्थिति में हममें अंकुरित इधर के विचार हमें उछालते हुए-से लगते ।" " 'सहज ही उठनेवाले विचार क्या होंगे शायद ?" LL 'पता नहीं, हमें लगने लगा कि हम अपराधी हैं। हमारे कारण हमारी देवी कितनी परेशान हुई होंगी - यह बात हमारे दिल में सदा चुभती रही। हम दोनों ने कितने चैतन्य-पूर्ण सन्निवेशों का अनुभव किया है, ऐसा समय शायद फिर नहीं आएगा। हमारी देवी की चेतना इस प्रक्रिया से निष्क्रिय हो गयी होगी-यों सोचते-सोचते हमारा मन विक्षुब्ध हो उठा था। परन्तु यहाँ आने के बाद, यहाँ के इन परिवर्तनों को देखने के पश्चात् और इस सुन्दरतम आनर्त - शाला को देखकर लगा कि देवी को चेतना आजकल कला- कल्पना को नवीन रूप देने में लगी हुई है। यह सब देख मन को बड़ी तसल्ली हुई।" "जब तक यह देवी जीवित रहेगी तब तक सन्निधान को अपराध नहीं करने देगी। जो अपने को अपराधी मान बैठते हैं, वे शक्तिहीन बनते हैं, कायर होते हैं। सन्निधान को ऐसा नहीं होना चाहिए। सन्निधान द्वारा तो अधिकाधिक देन इस पोय्सल राज्य को मिलनी चाहिए। इसीलिए सन्निधान की स्फूर्ति जगाते रहने की ही ओर देवी का विशेष ध्यान रहता है; इसे समझकर विश्वास के साथ व्यवहार करना चाहिए। सन्निधान पर श्रद्धा रखनेवाली, सन्निधान की प्रगति पर विश्वास रखनेवाली सैकड़ों हाथ पसारकर पाणिग्रहण करने की इच्छा करें तब भी यह देवी विचलित नहीं होगी, न ही उनका विरोध ही करेगी। पहले-पहल उत्पन्न प्रेम और विश्वास उस समय जैसे रहे, आज भी वैसे ही अक्षुण्ण बने हैं। आगे भी वैसे ही रहेंगे। इन बातों से मेरी मानसिक शान्ति और निश्चिन्तता कभी आलोड़ित नहीं होगी। मैं सन्निधान को विश्वास दिलाती हूँ।" शान्तलदेवी ने कहा। 44 आगे बोलने के लिए मौका नहीं रहा। नियोजित व्यवस्था के अनुसार आनर्तशाला का उद्घाटन और पोसल लांछन की प्रतिष्ठा का समारम्भ बिहिदेव के हाथों सम्पन्न हुआ। यादवपुरी में उपस्थित अधिकारी वर्ग और पर - प्रमुख इस समारम्भ में उपस्थित रहे। शान्तलदेवी ने कहा, "यह कला मन्दिर है, यह उतना ही 98 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन -
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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