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________________ "तो क्या इस आनत-शाला में केवल नृत्य और नाट्य का ही प्रदर्शन होगा। "और क्या हो सकता है: "कुछ भी हो सकेगा; कवि, गमकि, वाग्मी आदि का सम्मान हो सकता है। तब मंच पर बैठनेवाले सम्मानित और सन्निधान एवं आप ही तो होंगे न? परदा न रहेगा तब उसे रंगना अच्छा है।" "सब एक हो रंग से रंगा रहे। पंच पर कुछ ठोस रंग हो। प्रेक्षकों के बैठने की ओर कुछ हल्का रँगा हो। मंच पर के मत्त-वारण स्तम्भ, जैसा तुमने बताया, साँवले रंग से रंगे हों।" वेदी के पुख-मण्डप पर पोय्सलों का राज-लांछन रूपित हो तो कैसा रहे?" उदयादित्य ने पूछ।। "हम अशाश्वत हैं। हमारा काम स्थायी होकर रहेगा। सदियों बाद भी पोयसलों की पहचान के लिए वह लांछन मार्गदर्शक बना रहेगा। जिस तरह हम साधना, शौर्य, त्याग, दान-धर्म, दत्त-स्वाम्य, क्रय-विक्रय आदि अपने सभी कार्यों को प्रस्तरभित्तियों पर स्थायी रूप देते हैं। वैसे ही सभी में पोय्सलों का राज-लांछन का होना उचित है। अब तक पोय्सलों द्वारा निर्मापित किसी भी वास्तु-शिल्प में पोय्सलों का राजलांछन नहीं है। अब इसी से उसका आरम्भ हो।" शान्तलदेवी ने कहा। तुरन्त शिल्पी बैचोजा को उदयादित्य ने बुलवाकर उस राज-लांछन्न की रूपरेखा का विवरण दिया। शान्तलदेवी ने भी अपनी दृष्टि से जो ठीक लगे, उन सुझावों को सामने रखा। बैचोजा अपनी कल्पना के अनुरूप एक रेखा-वित्र तैयार कर लाया। उसमें शान्तलदेवी ने कुछ परिवर्तन-संशोधन सुझाये। उसी के अनुसार उत्कीर्णन-कार्य आरम्भ हो गया। आनर्त-शाला का विस्तरण-कार्य शान्तलदेवी की देखरेख में चला तो भी उसका शास्त्रोक्त विधि से उद्घाटन एवं लांछन-स्थापना का कार्य, सन्निधान के लौटने के पश्चात् उन्हीं के अमृत-हस्त से करवाने का निश्चय शान्तलदेवी ने किया। यादवपुरी में राजमहल में अपनी अनुपस्थिति के उस अल्प समय में रूपान्तरण होकर नयी लगनेवाली आनत-शाला के वैशाल्य को देखकर बिट्टिदेव चकित रह गये। उन्हें जब जैसा लगा उसे अपनी हृदमेश्वरी से कभी छिपाये नहीं रखा। आज भी उन्होंने वही किया। “देवी, हम सोचते कुछ और थे और यहाँ हुआ कुछ और ही।" उन्होंने कहा। "तो सन्निधान को इधर की सोचने का समय भी रहा?" शान्तलदेवी ने पूछ।। "क्यों?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 91
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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