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"सन्निधान का आदेश हुआ तुरन्त आने के लिए। बात..." घबड़ाहट के स्वर में पण्डितजी कहने लगे कि तभी बिट्टिदेव बोले, "पहले बैठिए तो सही। घबड़ाने की कोई बात नहीं है।"
शान्तला की घबड़ाहट भी दूर हुई। पण्डितजी भी बैठ गये। रेविमय्या, जो शान्तलदेवी के साथ आया था, समर पर ही रहा.
बिट्टिदेव ने अपनी माताजी की अस्वस्थता की बात सुनायी और कहा, "हमें अभी तुरन्त चेलापुरी जाना है। हमारी इस यात्रा में स्वास्थ्य न बिगड़े, इस ओर ध्यान देते रहने के लिए आप साथ रहेंगे ही। महामातृश्री बहुत वयोवृद्ध हैं। पोयसल सन्तान को प्रगति के लिए सब कुछ समर्पित कर देनेवाली त्यागमयी माता हैं। उनकी अभिलाषा को पूर्ण करना हमारा कर्तव्य है। अब की जब हम यात्रा के लिए निकले तो उन्हें पूरा समाधान नहीं रहा। पट्टमहादेवी को युद्ध में ले जाने की बात उनके मन को रुची नहीं। फिर भी उन्होंने आसीस देकर भेजा। जिस क्षण से यह समाचार मिला है कि उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं, तभी से हमारा मन कह रहा है–'उठो, देर मत करो, चलो!' इसलिए हम अपना निर्णय सुना रहे हैं। कोई इसके विरुद्ध कुछ न कहे, तुरन्त चलने के लिए तैयार हो जाएँ। दूसरों की राय जाने बिना निर्णय करना हमारी रीति नहीं है, परन्तु इस सन्दर्भ में किसी से राय न लेकर निर्णय ले लेना अनिवार्य था। रेबिमय्या, तुम पट्टमहादेवी से पूछकर यात्रा की तैयारी करो। उदय, तुरन्त पुनीसमय्या और मंचि दण्डनाथ को बुलवाओ। उनकी तैयारी कहाँ तक हुई है, इसे आनना है।"
"कल सुबह यात्रा करने का निर्णय हुआ। सुना कि मुहूर्त अच्छा है । यह खबर मिलने पर सन्निधान के साथ बात करने के उद्देश्य से ही मैं आया था।" उदयादित्य ने कहा।
"ठीक है, फिर भी जाने के पहले उनसे बातचीत करनी है। जल्दी बुलवाओ।"
उदयादित्य ने वहाँ से बाहर आकर मंचि दण्डनाथ आदि को कहला भेजा। रेविमय्या और शान्तलदेवी वहाँ से चले गये।
"पण्डितजी, रुके बिना लगातार यात्रा करनी होगी। पूजा-पाठ और भोजन मात्र के लिए समय रहेगा। इसलिए जो ओषधियाँ चाहिए, उन सबको आप अपने पास तैयार रखें। एक प्रहर के अन्दर हम रवाना हो जाएँगे।"
"बाकी सब ठीक है। अस्वस्थ प्रभु यात्रा पर जा रहे हैं, इसलिए रवाना होने के मुहूर्त मात्र को पूछकर जान लेते तो शायद अच्छा होता!" डरते-डरसे पण्डितजी ने कहा।
"हम कहीं लड़की देखने नहीं जा रहे हैं। माँ के दर्शन के लिए सब अच्छे मुहूर्त हैं। अब आप चलिए।" बिट्टिदेव ने स्पष्ट कहा।
8 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तोन