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________________ देखते खड़ा हो गया। थोड़ी दूर पर ही राज-दम्पती और मंचिअरस बैठे थे। बिट्टिदेव ने शान्तलदेवी के विचार बताते हुए कहा, "सभी मन्त्रिगण कल आ जाएँगे। उन सबसे परामर्श कर उसके सम्बन्ध में निर्णय करने का विचार किया है।" "ठीक है।" मंचिअरस ने कहा। "आपकी क्या राय है?" "पट्टमहादेवी की राय के बाद दूसरी क्या राय हो सकती है?" "चाहे किसी की भी राय हो, औचित्य पर विचार करके सलाह देना चाहिए। यों हो हाँ में हाँ मिलाने पर विचार-विनिमय ही क्यों हो?" शान्तलदेवी ने कहा। "मैंने यों ही हाँ में हाँ नहीं मिलायी। यह युक्तियुक्त और समयोचित है-ये मेरी राय है।" मंचिअरस बोले।। "समयोचित क्यों है?" बिट्टिदेव ने पूछा। "सन्निधान को चालुक्य सेना के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी शायद न हो। मैंने अपनी आँखों देखा है। चालुक्य राजा से जब प्रभु की मैत्री बनी रही और जब धारानगरी पर हमला हुआ तब की अपेक्षा अब उनकी सेना बहुत बढ़ गयी है। हमारी सेना उससे भी बड़ी है ! नके पियों को प्रत्यक्ष रोपा हो जाए तो अच्छा है। इससे आनेवाला संकट भविष्य के लिए स्थगित हो जाएगा। इसलिए इस युक्तियुक्त और समयोचित कहा।" "सैनिक रहस्य को इस तरह प्रकट होने देना उचित होगा?" बिट्टिदेव ने पूछा। "इसमें रहस्य के प्रकट होने की बात ही कहाँ है ? युद्ध की रीति, म्यूहरचना आदि बातें रहस्य की हैं। सैन्य बल कितना बड़ा है, यह तो प्रचार करने योग्य विषय है।" मंचिअरस ने कहा। "ठीक है। देखें बाकी लोगों की क्या राय होगी," मिष्टिदेव जोले 1 बात यहीं आकर रुक गयी। इन लोगों ने रेविमच्या को ओर देखा। वह वैसे ही स्तम्भ की तरह खड़ा था। शान्तला ने पूछा, “आफ्ने बाहुबली स्वामी से क्या प्रार्थना की, दण्डनाथ जी।" मंचि दण्डनाथ मुंहबाये मौन रहे। "कहना ही चाहिए--ऐसी कोई जबरदस्ती नहीं। कह सकते हों तो कहें।" शान्तलदेवी ने फिर पूछा। "जानते हुए भी जिसे नहीं मांगना चाहिए वही माँगा। यह होगा, इसका भरोसा भी नहीं। इसलिए..." "अच्छा जाने दीजिए।" शान्तलादेवी बोली। 56 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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