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________________ "मेरी भी एक उम्र थी जब आपको छेड़खानी से पुलकित हो उठती थी। अच्छा, उसे रहने दीजिए। बहुत दिन हुए बेलुगोल गये। बाहुबली स्वामी के दर्शन की अभिलाषा है। सन्निधान मानें तो..." बीच ही में बिट्टिदेव बोले, "इसे मना कौन करेगा? जरूर जाएंगे। चोल प्रतिनिधि आदियम बहुत बकझक करने लगा है। उसे बन्द कराने के लिए अपेक्षित शक्ति हमें दें-यही प्रार्थना है, इसके लिए एक मौका भी मिल जाएगा।" "वह आदियम...क्या बकझक कर रहा है?" "उसे अभी पोय्सलों के हाथ की करामात का परिचय नहीं हुआ है, इसलिए जो मन में आया, बकझक करता रहता है। कहता है कि पोय्सल खाली बात बनानेवाले हैं।" "बड़े-बड़े हाथी ही बह गये तो इन मच्छरों की क्या ! उसे पाठ पढ़ाना पड़ेगा।" "जब रणचण्डी ने ही हमें वरण किया है तो यह कौन-सा बड़ा काम है।" "न, न, अब की मैं आपके युद्ध-व्यापार में हस्तक्षेप नहीं करूंगी। आपका कुमार बिट्टिगा आगबबूला हो उठेगा।" "तो फिर एक माझी लाकः सेवाको सह भी ठीक हो जाएगा। अच्छा, इस बात को रहने दो। अब यह बताओ कि अभी जिन शिविरों को हमने देखा, उनके बारे में तुम्हारी क्या राय है?" "ठीक ढंग से चल रहे हैं। इन सबको देखने के बाद मुझे एक बात सूझ रही है। एक बार बिना शोरगुल के हमारी सेना को दोरसमुद्र में इकट्ठा कर उसकी विशालता अपनी आँखों देखें। फिर उसको प्रबल भागों में विभाजित कर एक-एक दण्डनाथ के सुपुर्द एक-एक सैन्य घटक सौंप दें, जिस तरफ शत्रु-भय का आतंक का अनुमान है, उधर के सीमाप्रान्त में एक सैनिक अड्डा तैयार कराएँ। यों तो सभी राजाओं के गुप्तचर हमारी राजधानियों में घात लगाये बैठे ही हैं। हमारी सेना कितनी बड़ी है-इसकी खबर शत्रुओं के कानों में पड़े। यह खबर ही उनके लिए सिंहस्वप्न हो जाएगी।" __ "ऐसा हो तो वेलगोल पहुँचते-पहुँचते प्रधान गंगराज को वहीं बलवा लेने की व्यवस्था करेंगे। हो सके तो बाकी मन्त्रीजन भी वहाँ आ जाएँ।" बिट्टिदेव बोले। "तो ऐसा ही होना चाहिए न?" सन्निधान दम्पती ने एक बार फिर बाहुबली के दर्शन किये। वही पुराने पुजारी अब भी पूजा के काम में निरत थे। उन बल गयी थी। दाँत गायब हो चुके थे इसलिए शान्तलदेवी तुरन्त नहीं पहचान सकीं। वह पूछना ही चाहती थी कि इतने में पुजारीजी ने कहा, "पट्टमहादेवी से बाहुबली स्वामी वही 54 :: पट्टपहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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