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________________ का आलेप अभी-अभी समाप्त हुआ है अत: गीला है। यह चन्दनालेप सर्वत्र एक-सा सूख जाय तो समझो कि पत्थर में दोष नहीं। यदि सभी ओर से एकसा सूखकर कहीं गीला रह जाय तो पत्थर में दोष है-यह बात दोनों के लिए स्वीकार्य है। लेपन कार्य ठीक ढंग से चला है इस बात के लिए ये दोनों शिल्पी प्रमाण हैं, जो अन्दर थे। इस तरह का परिशीलन या परीक्षा अब तक हुई है या नहीं, सो हमें ज्ञात नहीं। बुजुर्ग कहा करते थे कि जो होता है, सब भलाई के लिए। फिर उक्ति भी है, 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि।' इसलिए हम भगवान् से प्रार्थना करें कि भलाई एवं श्रेयस्कर से वे सबकी रक्षा करें।" बिट्टिदेव ने कहा। ___ इसके पश्चात् महाराज और पट्टमहादेवी अपने लिए निर्दिष्ट आसनों पर विराजे। शेष लोग भी बैठ गये। शिल्पी भी वहीं पार्श्व में स्थित आसनों पर बैठ गये। पहरेदारों के यत्र-तत्र रहने के कारण लोगों में मौन छाया रहा। वातावरण में एक प्रकार का कुतूहल था। सबको दृष्टि चन्दन-लिप्त केशव की मूर्ति पर लगी थी। फागुन का अन्तिम दिन, निरभ्र आकाश, प्रखर सूर्यरश्मि । चन्दन शीघ्र ही सूख चला। सूरज के ताप के साथ लोगों में कुतूहल का भाव भी बढ़ रहा था। अर्ध प्रहर का समय मौन में बीता। चन्दन का कण-कण धीरे-धीरे सूखसा जा रहा था। लोग देख रहे थे। मूर्ति का बहुलांश सूख चला। किरीट, मुख, बाहुद्वय, छाती, कन्धे, कण्ठ, पाद द्वय, जाँघ, पीठ आदि सब अंग सूख गये। पेट पर, नाभि के चारों ओर हथेली-भर की जगह अभी सूखी नहीं थी, गीली ही रही। लोगों में फुसफुसाहट प्रारम्भ हो गयी। ऐसा लगने लगा कि लोग अब-तब में निर्णय कर ही लेंगे। महाराज उठ खड़े हुए। "शान्त ! शान्त !! सन्निधान क्या कहते हैं, सुनो!" बन्दिमागधों ने घोषणा की। सर्वत्र मौन छा गया। "शीघ्रता न करें। हो सकता है कि उस भाग का चन्दनालेप दूसरी जगहों के लेप से कुछ मोटा हो। सूखने में कुछ समय लगेगा। प्रतीक्षा करें।" महाराज इतना कहकर बैठ गये। स्थपति उठ खड़े हुए और राजदम्पती की ओर देखा। महाराज ने पूछा, "कुछ कहना है, स्थपतिजी?" स्थपति ने कहा, "हाँ, आज्ञा हो तो निवेदन करूँ!" "कहिए!" "अब प्रतीक्षा में समय व्यर्थ करने की आवश्यकता नहीं। पत्थर दोषयुक्त है। मैं स्वीकार करता हूँ। अब मैंने जो वचन कहे, उसका पालन करने की अनुमति दें। आज से मुझे इन हाथों को रखने का अधिकार नहीं। इस सन्दर्भ में मैं एक पट्टमहादेवी शासला : भाग तीन :: 477
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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