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________________ इसी तरह की चर्चाएँ लोगों में फूट रही थीं-फैल रही थीं। न कोई ढंग था, न क्रम, न कुछ और ही। स्थपति ने जो मूर्ति बनायी थी, उसे रात को ही एक दीवार के सहारे बने छप्पर में पहुंचाया गया था। उसके चारों ओर पट्टियाँ लगाकर आड़ कर दी गयी थी। उसके अन्दर स्थपति, युवक और शिल्पी थे। अन्दर का हाल किसी को पता नहीं। परन्तु लोगों की दृष्टि उसे भेदकर, 'भीतर क्या है' जान लेने की उत्सुकता से भरी हुई थी। । थोड़ी ही देर में उदयादित्यरस और बिट्टियण्णा वहाँ आये। झोंपड़ी के पूर्व की ओर लगी दीवार के पास के पहरेदार ने उन्हें अन्दर जाने का रास्ता बताया। थोड़ी देर के बाद दोनों बाहर आये। लोगों ने कुतूहल से पूछा-क्या हुआ? उन्होंने संकेत से बताया, 'प्रतीक्षा करें।' फिर वे चले गये। इसके बाद महाराज और पट्टमहादेवी तथा रानियाँ आयी। उनके साथ उनका रक्षक दल था। साथ में उदयादिस्यरस और कुंवर बिट्टियण्णा भी थे। सनियाँ अपने लिए बने आसनों पर बैठ गयीं। महाराज और पट्टमहादेवी दोनों अन्दर विग्रह के पास नले गये! क्षमदल दीवार के बाहर खड़ा रहा। थोड़ी देर बाद एक शिल्पी बाहर आया । रक्षकदल के दो सिपाहियों को अन्दर ले गया। इसके थोड़े समय के बाद, महाराज और पट्टमहादेवी बाहर आये। उनके पीछे स्थपति और युवक दोनों थे। उनके हाथ पीठ पीछे बैंधे थे। रक्षकदल के सिपाहियों की देख-रेख में वे दोनों चल रहे थे। और दो शिल्पी जो अन्दर थे वे भी उनके पीछे-पीछे आ रहे थे। "उपस्थित महाजनी ! आज हम एक विचित्र स्थिति का सामना कर रहे हैं। दोनों शिल्पी अत्यन्त उच्च कलात्मक क्षमता रखते हैं। पर दोनों स्पर्धा में लगे और हमें भी अपनी लपेट में ले लिया है। इस स्पर्धा का परिणाम प्रकट होने के पूर्व, इन दोनों को इसी प्रकार बन्धन में रखने का विचार हम और पट्टमहादेवी ने निश्चित किया है। यह निर्णय न प्रधानजी जानते हैं, न मन्त्रीगण ही, यहाँ तक कि हमारे भाई भी नहीं जानते। विरोध न करने पर भी वे दोनों चकित हो रहे हैं। आप लोग भी चकित हुए होंगे। हमने ऐसा क्यों किया, यह बात आप लोगों को आगे चलकर ज्ञात होगी। यह विग्रह का प्रस्तर दोषपूर्ण है या नहीं-इस बात की परीक्षा दोनों की सम्मति पर हो रही है। उसे आप सब लोग देख सकते हैं।" कहकर बिट्टिदेव ने दीवार-जैसी पड़ियों को हटाने का आदेश दिया। मंगलस्नान कर स्वर्णवस्त्र धारण किये, सारे अंगों पर हरिचन्दन का लेप लगाये हुए खड़ी प्रतिमा को लोगों ने देखा। "मूर्ति किरीट से लेकर पाद-पीठ तक सर्वत्र चन्दन आलेपित खड़ी है। चन्दन 476 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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