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________________ हैं। श्री आचार्यजी यहाँ उपस्थित होते तो वे इस विषय का निर्णय कर सकते थे। यह मन्दिर और यह प्रतिष्ठा उन्हीं को प्रेमी से हो रही है। इसलिए ह प्रतिष्ठा के कार्य को सन्दिग्ध स्थिति में सम्पन्न कराना उचित नहीं जान पड़ता।" वह कह ही रहा था कि बीच में ही बिट्टिदेव ने टोक दिया, " आपकी राय में क्या औचित्य है ?" " स्थपतिजी बजुर्ग हैं, अनुभवी और प्राज्ञ हैं। इस लड़के का व्यवहार ऐसे प्राज्ञ और अनुभवी के प्रति अनुचित एवं अस है। इस तरह डींग मारनेवाले को यों छोड़ देना ठीक नहीं। बुजुर्ग स्थपति का अपमान कर उनकी प्रशस्ति पर कालिख पोतने का प्रयास करनेवाले इस लड़के को दण्ड देना चाहिए।" तिरुवरंगदास ने कहा। यह सुनकर युवक आग-बबूला हो उठा। वह उठ खड़ा हुआ और खोला, "मैं ऐसी सभाओं को नहीं जानता किस तरह, क्या कहना चाहिए मैं नहीं. जानता। परन्तु सत्य बात कहने में कभी पीछे हटनेवाला या डरनेवाला नहीं। सम्पूर्ण राज्य ही मेरे विरुद्ध उठ खड़ा हो, तो भी मैं नहीं डरता। यह तिलकधारी, महाराज के ससुर हो सकते हैं। कोई ऐसा न समझे कि मैं उनसे डरता हूँ। उन्होंने जो बात कही मैं उसका प्रतिवाद करता हूँ ।" "किस बात का ?" "उन्होंने मुझ पर यह आरोप लगाया है कि मैंने बुजुर्ग स्थपतिजी का अपमान किया और उनकी प्रतिष्ठा पर कालिख पोत दी। उनका यह आरोप निराधार है।" युवक ने कहा । 11 'क्यों निराधार हैं? तुम एक छोकरे हो । बहुत बड़े प्राज्ञ- जैसा परिशीलन किया। एक लड़के का उत्साह भंग न करने की उदार भावना दिखायी तो तुमने क्या कहा ? वह मूर्ति बहुत ही सुन्दर और शास्त्रोक्त सभी प्रतिमा- लक्षणों से युक्त है, उस मूर्ति के प्रस्तर को दोषयुक्त बताया। मन्त्र न जाननेवाला जैसे मन्त्रपाठ से अधिक उगाल निकालता है और नाच न जाननेवाली वेश्या आँगन को टेढ़ा बताती है, वैसे ही तुमने जो समझा, बक दिया कि पत्थर दोषपूर्ण है। उसका उद्देश्य ? स्थपति को अपमानित करना नहीं है ?" 44 " मैंने तो वस्तुस्थिति बतायी। इसमें मेरा कोई बुरा उद्देश्य नहीं था ।" 'अब यदि तुम्हारी बात झूठ हुई तो ? यह पत्थर निर्दोष हो तब ?" 'तब में यह कहनेवाली अपनी जीभ को ही काट लूँगा। काम करनेवाले इन हाथों को काट डालूँगा । इस विषय में स्थपतिजी या अन्य कोई भी सही, क्या कहते हैं, मुझे बताइए ।" क्रुद्ध सिंह की तरह युवक गरज उठा। " दूसरे कोई क्या कहेंगे? अब मुझे एक बात स्पष्ट रूप से कहनी है। इस 464 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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