SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभा के लिए कुछ प्रमुख राजकर्मचारी एवं कुछ प्रमुख शिल्पी निमन्त्रित थे। साथ ही श्री आचार्य द्वारा शास्त्रोक्त रीति से प्रतिष्ठा समारम्भ को सम्पन्न करने के लिए प्रेषित कुछ प्रमुख व्यक्तियों को भी निमन्त्रण दिया गया था। सभी रानियाँ उपस्थित रहीं। मारसिंगय्या और मंचिअरस भी उपस्थित थे। तिरुवरंगदास को भी उपस्थित रहना पड़ा। महाराज बिट्टिदेव के सम्मुख सभा सम्पन्न हो—इसकी व्यवस्था की गयी थी। सभा की संचालिका, सूत्रधारिणी तो पट्टमहादेवी ही थीं इसलिए उन्होंने ही कार्यारम्भ किया। उन्होंने उस युवक के आने के समय से लेकर जो-जो बातें हुई, उन सबको सुनाकर कहा कि मैंने मूल विग्रह के सम्बन्ध में निर्णय करने का उत्तरदायित्व स्थपति पर ही छोड़ दिया था। अब स्वयं स्थपतिजी ही बताएं कि क्या विचार किया है। उस युवक के आने के समय से--युवक और तिरुवरंगदास में जो व्यक्तिगत बातें हुई थीं, उन्हें छोड़कर, जो-जो घटनाएं घर्टी उन सब बातों को बताने के बाद अन्त में कहा, "अब जिस मूल केशवस्वामी की मूर्ति मैंने बनायी है, वह मूर्ति शिल्पशास्त्र के अनुसार, प्रमाण के अनुसार भी सब तरह से ठीक है। परन्तु मूलत: इस मूर्ति को बनाने के लिए जिस पत्थर का उपयोग किया गया है, यही होमगुस्न है. इसलिए म पनि तिला योग्य नहीं है। यह इस युवक की राय है। अब मुहूर्त निश्चित है। एक दूसरे शिल्पी की राय को अमान्य करके इस विषय पर मुझ अकेले का निर्णय करना उचित नहीं। इसलिए मैं इस सभा के समक्ष निवेदन कर रहा हूँ। अन्तिम निर्णय इस मण्डल का है।" स्थपति ने स्पष्ट किया। "उसकी राय को रहने दीजिए। आपकी अपनी राय क्या है?" बिट्टिदेव ने प्रश्न किया। "मैं जन्मत: शिल्पी हूँ। यह विद्या मेरे पास वंशानुगत है। प्रस्तर-दोष को न समझनेवाला तो शिल्पी बन ही नहीं सकता। अपने कर्तव्य से मैं कभी च्युत नहीं हुआ और हो नहीं सकता। अपने दायित्व को भी मैं समझता हूँ। यह समझकर ही कि पत्थर में कोई दोष नहीं, इस पत्थर को मैंने इस मूर्ति के लिए चुना था।" - "तो बात समाप्त हुई न? आपकी राय हमारे लिए मान्य है।' बिट्टिदेव ने कहा। उस लड़के पर तिरुवरंगदास को पहले ही क्रोध था। 'अब तो यह और भी बकने लगा है। उसे एक बार डाँट देंलो ठीक होगा। डॉटकर ही उसकी बुद्धि को ठिकाने लगाना चाहिए', यही सोचकर वास्तव में वहाँ उस सभा में बोलने का अधिकार न होने पर भी तिरुवरंगदास उठ खड़ा हुआ, बोला, "मेरी एक विनती पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 463
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy