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________________ मान लिया जाय? इस जैसे और भी आ जाएँ और परीक्षण करते रहें तो इसका अन्त होगा?" कुँवर बिट्टियण्णा ने कहा। "जहाँ तक मेरी बात है, मेरी कृति का परीक्षण कोई भी करे, मुझे क्या आपत्ति? इससे मुझे कोई असन्तोष नहीं होगा। जो अपने काम पर विश्वास नहीं रखते. टिम सामलिलाप्त नहीं, वे ही परीभण या परिशीलन से डरते हैं।" स्थपति ने कहा। "आत्म-स्थैर्य ही कलाकार की मूल शक्ति है, यह बात मैं पट्टमहादेवीजी की कृपा से जानता हूँ। फिर भी प्रकृत सन्दर्भ में किसी दूसरे के परिशीलन के लिए अवकाश देना हो, तो उस तरह परिशीलन करनेवाले की योग्यता का परीक्षण कर यह जानना आवश्यक है कि वह इस योग्य है भी या नहीं।" बिट्टियण्णा ने बल देकर कहा। "मेरी योग्यता की परीक्षा के लिए मुझे क्या करना होगा? आज्ञा हो!" युवक ने निवेदन किया। "स्थपतिजी एक चित्र दें। युवक उसके अनुसार मूर्ति बनाए। होगा न?" कहकर बिट्टियण्णा ने शान्तलदेवी की ओर देखा, उनकी सम्मति मिले, इसी भात्र से। "स्वीकार है।" युवक ने कह!] "परन्तु इस सबके लिए अब समय कहाँ?'' शान्तलदेवी ने प्रश्न किया। "अभी चित्र दें तो कल सूर्योदय तक तैयार कर दूंगा।" युवक ने कहा। युवक की स्वीकृति के अनुसार उसे चित्र दे दिया गया। "रात का काम करने के लिए प्रकाश की विशेष व्यवस्था करनी होगी।" युवक ने कहा। "मेरे निवास पर आ जाओ तो तुम्हारे लिए जो व्यवस्था चाहिए, सब कर दी जाएगी।" स्थपति ने कहा "आपके विश्राम में बाधा होगी न?" युवक ने कहा। "ऐसा कुछ नहीं।" इस खुले मैदान के शिविरों में प्रकाश की व्यवस्था करमा बहुत कठिन होता है, इसलिए वहाँ का प्रस्ताव किया।" "ठीक है, तब वहीं ले जाइए। इस विग्रह के लिए उपयुक्त पत्थर को चुनना होगा न?" युवक ने कहा। "वहाँ बात हैं। जो तुम्हें चाहिए सब वहाँ हैं।" स्थपति ने कहा। ''पत्थर वहाँ क्यों गये?" उदयादित्य ने पूछा। "स्थपतिजी रात के समय अपने आवास पर भी विग्रह-निर्माण के कार्य में लगे रहते हैं, मुझे ऐसी सूचना मिली है। मैंने इस विषय में चर्चा नहीं की थी।" शान्तलदेवी ने कहा। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 457
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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