SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उमड़ रहा था। पद्मलदेवी से जो लोग पहले से परिचित थे, उन्होंने जब उनके व्यवहार को देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हो रहा था। अपने कुछ नित्यकर्मों से निबटने के लिए ही वह महामातृश्री से अलग होती, इसके बाद महामातृश्री ही के साथ सारा समय बिताती। कभी कुछ बातचीत करते समय कोई पुरानी बात याद आ जाती, तब जो गलती उसने और उसकी माँ ने की सब पर तटस्थ होकर विश्लेषण करती। इस तरह उसके मन का मैल धुल जाने की प्रतिक्रिया उसके भीतर चल रही थी, वह अपने किये का प्रायश्चित्त मन-ही-मन कर रही थी। इससे यह मारा सोना बन गया। ___ चामलदेवी और बोप्पदेवी एक तरह से राजमहल के वातावरण में हिलमिल गयी थीं। उनकी रीति, रहन-सहन की ओर किसी का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ। उन पर न ही कोई टीका-टिप्पणी चली। यों एक महीना व्यतीत हो गया। इतने में राजकुमारी हरियलदेवी की वर्धन्ती का उत्सव आ गया। उस दिन पद्यलदेवी ने अपनी ही बच्ची समझकर उसे तेल-स्नान कराया, उसे बड़ी दिलचस्पी से सजाया, देखभाल की। सन्तोष के पारावार से भरे राजमहल में सम्पन्न इस उत्सव का वर्णन किया नहीं जा सकता। उत्सव के इस अवसर पर, उस दिन शाम को आरती के समय, यादवपुरी की सभी सुमंगलियों को निमन्त्रित किया गया था। किसी तरह के भेद भाव के बिना सभी सुमंगलियों को समान रीति से पुरस्कृत किया गया। राजमहल के विशाल बरामदे के सामने के आँगन में बड़ा शामियाना सुमंगलियों से भर गया था। इन सभी के आशीर्वाद से पुलकित हरियलदेवी साक्षात् देवी-सी लगती थी। इस सुन्दर सजी देवी की तरह शोभित राजकुमारी को कहीं किसी की नजर न लगे, इसलिए डीट उतारी गयी। कन्याओं को एक-एक छोटी साड़ी और चोली का दान किया गया। कुमारियाँ साड़ी-चोली को अपनी-अपनी छाती से लगाकर सजकुमारी को निकट से देख आनन्दित हो उठी। अपने जीवन का यह महान पर्व मानकर सन्तोष और तृप्ति के साथ वे अपने-अपने घर चली गयीं। एचलदेवी अपनी पौत्री के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करती हुई सो गयी। वह शुभ दिन सारी यादवपुरी के लिए सन्तोष का दिन था। इसके दूसरे ही दिन प्रात:कालीन सूर्य सदा की तरह राजमहल में सन्तोष की किरणें न फैला सका। रोज की तरह पद्मलदेवी जागी, बिस्तर से उठते ही जोर से चिल्ला उठी। उसके उस क्रन्दन को सुन सारा राजमहल जैसे काँप उठा। सुनते ही एकदम चट्टला अन्दर घुस आयी। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 45
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy