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________________ यदुगिरि बुलवाया था। उसी दिन उनके यादवपुरी लौट जाने के बाद, इन लोगों को आदेश देकर भेजा है।" "हो सकता है। कदाचित् तुम्हारे पिता की आवश्यकता यादवपुरी ही में हो, इसलिए नहीं भेजा हो।" "यह ज्ञात होने पर भी कि वे मेरे पिता हैं, इस आनन्दपूर्ण विजयोत्सव, मन्दिर की प्रतिष्ठा, इन उत्सवों में उपस्थित होने का अवसर नहीं दिया गया। इससे यही लगता है कि इसमें कुछ षड्यन्त्र है। मुझे वास्तव में इसका समाधान चाहिए।" ___ तुम्हारे मन में अकारण ही संशय पैदा हो गया है। तुम्हारी राय को हमने मान्यता नहीं दी। इससे तुमको कुछ असन्तोष हुआ होगा। यह बात कह सकने का साहस न होने के कारण, इसे लेकर मन-ही-मन घुलती रही हो; यह असन्तोष ही तुम्हारे मन में संशय पैदा होने का कारण है।" "पद्रमहादेवी के मां-बाप यहीं हैं। रानी बप्पलदेवी और राजलदेवी, इन दोनों के साथ मंचिअरसज्जी भी आएँगे।" "इस बात को निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता। चालुक्यों की सेना के हमारे राज्य पर आक्रमण करने की सूचना हो, तो वे यहाँ आ ही नहीं सकते। उत्सव और उससे होनेवाले आनन्द से भी बढ़कर है राष्ट्र की रक्षा। वहीं मुख्य __"वह जो भी हो, मेरे पिताजी यहाँ आएँगे तो मुझे बहुत ही प्रसन्नता होगी।" 'वहीं हमने कहा था न, वे तुम्हारे पिता होकर आ सकते हैं। उनके जीवन-यापन के लिए मासिक वृत्ति बँधी रहेगी। परन्तु यहाँ उनको नियुक्त करने के लिए कोई कार्य नहीं है।" "यों, बैठे खाते रहने पर वे स्वयं सहमत न होंगे। पहले से श्रम करके खाने के आदी हैं।" "तो जहाँ व्यवसाय है, वहीं रहकर उसी को उचित मान लेना उत्तम है।" "इस उत्सव के अवसर पर कम-से-कम अवकाश देकर नहीं बुलवा सकते? इससे एक ओर मेरे लिए सन्तोष होगा और दूसरी ओर मेरे अन्दर की शंका भी दूर हो जाएगी।" "विचार करेंगे।" 'सन्निधान चाहें तो हो सकेगा; इसमें सोचना क्या है?" "यदि उनको अवकाश दें तो उनके स्थान पर दूसरे को नियुक्त भी तो करना होगा, है न? हम ही यहाँ से किसी को भेज दें, या आचार्यजी ने उन्हें नहीं भेजा, इसलिए उन्हीं के द्वारा सूचित करना होगा, आदि सभी बातों पर पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 431
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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