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________________ "कैसे पता लगेगा?" "यदि बुरे होंगे तो अपने काम में तन्मय होकर लग जाना सम्भव है?" "एक दिन साथ रहकर व्यक्ति को समझना सम्भव होता है?" "सम्भव बनाना चाहिए। पट्टमहादेवी ने इसे सम्भव बनाया है।" "तो क्या इसीलिए सन्निधान ने विवाह के पूर्व उनको बुलवाया था?" "वहाँ उन्होंने तुम्हें देखने तक का उत्साह नहीं दिखाया। ऐसी स्थिति में तुम्हारे बारे में राय पूछने का न तो अवसर ही रहा, न राय जानने के लिए कोई निश्चित विषय ही।" "वे सन्निधान के यदगिरि से यादवपुरी पहुँचने के पहले ही आ गयी थीं। उसी दिन मुझे अपने पिता के साथ मन्दिर में देख लिया था न!" "उसी दिन उन्होंने तुम्हारे पिता के स्वभाव को पहचान लिया।" "मेरे विषय में भी उन्होंने कुछ कल्पना की होगी।" "तुम वास्तव में उनके परिशीलन का विषय हो जाओगी और तुम्हारा सम्बन्ध राजमहल से होगा, यह वे सोच भी नहीं सकती थीं। राजमहल और राजकाज से सम्बन्धित होनेवाले प्रत्येक व्यक्ति का परिशील उसे करना ही होता है। "मेरे पिता के सम्बन्ध में उनकी क्या राय है?" "यह तुम्हें उन्हीं से जान लेना चाहिए।" "वही करूंगी। आज पट्टमहादेवीजी ने एक बात कही। वह मुझे भी ठीक लगी। कोई शंका उत्पन्न हो जाय तो उस विषय में स्पष्ट सीधे पूछ लेना चाहिए। इसलिए एक बात सन्निधान से सीधे पूछ लेने का साहस करना चाहती हूँ। क्या करूं?" "इस तरह कहना कि क्या करूँ, यह अधैर्य को दर्शाता है।" "मेरे पिता की वास्तव में यह इच्छा है कि यहाँ के इस मन्दिर के धर्मदर्शी बनकर रहें। बेटी होने के नाते उन्होंने मुझसे अपनी इच्छा प्रकट की थी।" "हमें भी यह बात पता है न! इस बारे में हमने निर्णय भी सुना दिया है।" __ "सो तो ठीक है; वह एक ओर रहे। एक और बात मेरे मन को सालती रही है। इस मन्दिर की स्थापना के कार्य में धार्मिक, शास्त्रीय विधियों के आचरण में सलाहकारों में उन्हें भी एक बनाकर आचार्यजी भेजेंगे, ऐसा मेरा विश्वास था। आचार्यजी ने उन्हें नहीं भेजा। मुझे लग रहा है कि इसका भी कोई कारण अवश्य होगा।" "सामने जो थे, उनमें से किन्हीं पांच लोगों को भेज दिया होगा। कदाचित् अनिवार्य उत्तरदायित्व रहित लोगों को चुनकर भेज दिया होगा।" । "परन्तु सुना है कि हमारे इधर आने के बाद आचार्यजी ने पिताजी को 430 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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