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________________ "बिना समझे-बूझे तुम्हें यों ही रानी बना दिया?" "सनी बनने पर किसी बात की कमी नहीं रहती। श्रम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अपने मन की सभी आशा-आकांक्षाएँ पूर्ण की जा सकती हैं। मानमर्यादा-प्रतिष्ठा बढ़ती है। इच्छानुसार धन-आभूषण कपड़े-लत्ते, जो चाहें, जब जैसा चाहे, पहन सकते हैं। कुल मिलाकर पूर्ण सुखी जीवन सम्भवतः उन्होंने ऐसा ही समझा होगा, मेरे ही जैसा। वे मुझे बहुत चाहते हैं। उनकी यह इच्छा है कि मैं सदा सुखी ही रहूँ।" __"यदि एक धनी के साथ भी तुम्हारा विवाह कर देते तो भी यह इच्छाएँ पूरी हो सकती थीं न?" "श्रीवैष्णवों में धनी कहाँ ? सभी वैदिक हैं, पुजारी या पुरोहित वृत्तिवाले। श्रम करें, मन्त्र-पाठ करके गला सुखा लें तब कुछ प्रसाद खाने को मिले।" "महाराज श्रीवैष्णव तो नहीं हैं न?" "श्री आचार्यजी ने उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार किया तो वे श्रीवैष्णव ही हुए न? फिर राजा तो भगवान् के समान होते हैं। ऐसी स्थिति में इन सब बातों पर कौन सोचेगा?" "तब तो यही हुआ कि तुम्हारे पिता ने इन सब बातों को बताया है।'' "कब?" "जब तिरुमलाई में रहे तब ही।" ।'इस विवाह के बारे में वहीं सोच लिया गया था?" "हाँ। यादवपुरी से कोई यात्री तिरुमलाई आये थे और हमारे यहाँ ठहरे थे।" "कुछ स्मरण है कि वे कौन थे?" "नहीं, इतना पता है कि वे श्रीवैष्णव थे। उनके नित्य-नियमों के लिए मैंने ही व्यवस्था की थी। उन्होंने यहाँ का सारा हाल सुनाया था। राजकुमारी जी के स्वास्थ्य ठीक हो जाने के कारण महाराज द्वारा श्रीआचार्यजी का शिष्यत्व स्वीकार करना, और आपका जैन होकर ही रहना, ऐसा होने पर भी राजमहल में आपका जीवन सुखी रहना, आदि। तब मैंने पूछा-पति और पत्नी दोनों अलग-अलग जाति और मत के हों तो सुखी रहना कैसे सम्भव है ? उन्होंने बताया कि वास्तव में आपके माता-पिता भी विभिन्न मत के हैं फिर भी वे प्रसन्न हैं और सुखी भी। मुझे तो यह सब विचित्र ही लगा। मेरे पिता को भी ऐसा ही लगा। उन्होंने पूछा, इस तरह के भिन्न-भिन्न मत-वालों की सन्तान से महाराज ने विवाह कैसे कर लिया? लगता है उन्हें तुरन्त कोई उत्तर नहीं मिला। बाद में बताया, इसमें क्या रखा है, वे महाराज हैं, भगवान के समान हैं। वे जिसे भी हाथ लगाएँ, वह पवित्र हो जाता पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 423
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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