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________________ "फिर भी सन्निधान को सदा मेरे ही पास रहना सम्भव हो सकता है ? या मेरी ऐसी अभिलाषा करना उचित है? जब वे पास नहीं होते, तब कई बार समय काटना कठिन होता है। ऐसे समय पट्टमहादेवी से मिलने की इच्छा मेरे मन में होती रही है, किन्तु वह सफल नहीं हो पायी।" "अब यह सब पुरानी बातें क्यों? एक बात तो स्पष्ट जान लो। जब भी तुम्हें कुछ ऐसा लगे तो मुझे बता दिया करो। ऐसी कभी चिन्तित न होना कि यहाँ अपना कोई नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ, समी। अन्त:पुर में अकेली बैठी-बैठी उद्विग्न नहीं होना। राजमहल के कार्यों में तुम्हें भी हिस्सा लेना चाहिए।" । "मुझे यह पता ही नहीं पड़ता कि यहाँ क्या करना चाहिए, क्या नहीं। कुछ करने जाऊँ तो कुछ-का-कुछ हो जाय तो क्या हो। इसलिए मुझे कमलपत्र पर टिकी पानी की बूंद की तरह रहना ही ठीक लगता रहा।" "वह तो धैर्यहीन लोगों की बात है। तुमने किसी पुरोहितजी से विवाह नहीं किया है। एक राज्य के महाराज से तुमने विवाह किया है। मैं और बम्मलदेवी सन्निधान के साथ युद्धभूमि में गयी हैं। तुमको भी इस काम से पीछे नहीं हटना होगा।" "ओफ-ओह ! यह सब मुझसे नहीं हो सकेगा।" "दुर द्वाद से डरत ने पानी के अनुल्ल नहीं।" "रानी हो जाये तो क्या जन्मजात स्वभाव बदल जाएगा?" "रानी केवल एक साधारण-सा व्यक्तित्व नहीं। वह देश की जनता की प्रतीक है। साधारण स्त्री और एक रानी, इनमें बहुत अन्तर है। लोग राज-परिवार के लोगों पर सतर्कता की दृष्टि रखते हैं। राज-परिवार के लोगों का व्यवहार साधारण जनता के लिए मार्गदर्शक होना चाहिए। तभी राजमहल और रानियों को जनता गौरव की दृष्टि से देखती है। राज-परिवार के लोगों की टीका-टिप्पणी जनता करने लगेगी तो फिर राजघरानेवालों को सिर उठाकर चलना बहुत कठिन हो जाएगा। इसलिए हम रानियों को अत्यन्त सतर्क रहना होगा और अपनी कमियों को सुधार लेना होगा। अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए जो अपेक्षाएँ होती हैं, उनका अर्जन करना होगा।" ''रानी के लिए क्या अपेक्षाएँ हुआ करती हैं सो पता हो तब न?" "क्यों, तुम्हारे पिताजी को ये सब बातें पता होनी चाहिए। उन्होंने जता दी होंगी न?" "उन्हें मन्दिर के कर्म, पूजा-पाठ की बातें, स्वादिष्ट भोजन की पाक विधियों, श्री वैष्णन्त्र धर्म के सम्प्रदायों की बातें, यही सब ज्ञात हैं। राजमहल के कार्य, रानियों की बातें ये सब उनको क्या पता?" 422 ; : पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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