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________________ न होगी ? आपका यह प्रश्न भी विचित्र है। मैं जानती नहीं क्या करना होगा। घर पर बड़े होते तो उनसे पूछा जा सकता था।' 'डरने की कोई बात नहीं। पित्त का उद्रेक होगा, घर पर नीबू हो तो कुछ पानी गरम करो, मैं बताऊँगा कि क्या करना चाहिए।' वह पानी गरम कर लायी। नीबू के टुकड़े बना लायी। थोड़ा नमक लाने को कहा। गरम पानी में थोड़ा-सा नमक डालकर नीबू निचोड़ा और फिर घूंट-घूँटकर थोड़ा-थोड़ा पिया जोर की डकार आयी डकार की आवाज सुन यह ठिठकी। मुझे हँसी आ गयी। मैंने कहा, 'डकार से डरनेवाली तुमसे और क्या काम हो सकेगा ।' उसने मुझे एक विशेष दृष्टि से देख सर झुका लिया। कुछ कहा नहीं। मैं कुछ सुधर गया, वैसे ही लेटा रहा। वह बायाँ हाथ टेके बैठी थी तो मैंने उसका हाथ पकड़ा। वह कुछ ध्यानमग्न-सी बैठी थी, हाथ पकड़ते ही वह मुझ पर झुक पड़ी। घबराकर कुछ आगे खिसक आयी। मैंने पूछा, 'जब हम घर पर नहीं होते हैं, तब तुम अपने मायके जाती हो, यह क्यों ?' घबराकर उसने पूछा कि 'किसने कहा।' 'चाहे कोई कहे, अपने घर में न रहकर मायके क्यों जाती हो ?' उसने कहा, 'यहाँ अकेली क्या करूँ ? बैठे-बैठे ऊब जाती हूँ। दीवार देखनी चैनी रहूँ? कोई दूसरा काम नहीं होता इसलिए वहाँ चली जाती हूँ और आपके लौटने से पहले यहाँ आ जाती हूँ।' मैंने पूछा, 'यह बात मुझसे या पिताजी से क्यों कही नहीं ?' 'मुझे सूझा ही नहीं कि यह बात कहनी है' उसने कहा, 'पास-पड़ोस के लोग अच्छे नहीं। मुझे इनका संग अच्छा नहीं लगा।' 'तो तुम इसलिए वहाँ जाती हो कि वहाँ तुम्हें अच्छी संगति मिलती है ?" उसने कहा, 'हाँ, वहीं पहले से रही, वहाँ अपनापन है।' मैंने पूछा, 'वहाँ कौन-कौन रहते हैं ?' उसने सबके नाम बताये। जब उसने अपने मामा का नाम बताया तो उसका उत्साह सौगुना बढ़ गया-सा लगा। यह मुझे कुछ अच्छा न लगा। मैंने सोचा कि अब बात नहीं बढ़ानी चाहिए। तब से मैं एक पखवारे तक काम पर नहीं गया। इसी बीच उसका वह मामा एक दो बार हमारे यहाँ भी आया गया। बड़े ही उत्साह के साथ उसका आतिथ्य मेरे यहाँ हुआ। तब मुझे लगा कि इस स्थान को छोड़ देना ही अच्छा है। पिताजी से कहा कि मैं और मेरी पत्नी अपने गाँव जाएँगे। इधर कुछ समय से यहाँ का अन्न-जल मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा हैं। पिताजी ने कहा, 'एक पखवारे में यह काम समाप्त हो जाएगा। बाद को सब साथ ही चलेंगे।' मैंने कहा, 'कोई दूसरा काम आ जाय तो आप उस पर लग जाएँगे। हमें अनुमति दीजिए।' उन्होंने यह कहकर छेड़ा कि 'वहाँ जाकर तुम दोनों किसी अड़चन के बिना आराम से रहना चाहते हो, तुम लोगों के सुख के बी में मैं क्यों पडूं ?' और जाने की अनुमति दे दी। हम अपने गाँव चले आये। पिताजी अपने कहे अनुसार वापस नहीं आये। किसी दूसरे काम में लगकर वहीं 374 पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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