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________________ "शरीर के नग्न-सौन्दर्य को देखना चाहनेवाले मानव की चंचलता यहाँ के बन्दर की क्रिया में रूपित है सांकेतिक रूप से।" "तो यह नग्न स्त्री को दिखाने के लिए कृत प्रयत्न नहीं है न।" "ऐसा होता तो नग्न स्त्री को बनाने में क्या कठिनाई थी? यहाँ का यह अन्दर पुरुष की कामना का संकेत है। इसीलिए उसका आकार छोटा और सांकेतिक है।" "तो उस बन्दर की क्रिया की प्रतिक्रिया उस स्त्री के मन में जो होगी, उसे भी शिल्प में व्यक्त करना चाहिए न?" शान्तलदेवी ने पूछा। "बन्दर की क्रिया से नारी के शरीर में लज्जा उत्पन्न होती है। मन में क्रोध उत्पन्न होता है।" "इन्हें शिल्प में उत्कीरित करें तो वह क्रियात्मक शिल्प होगा, केवल भंगिमा नहीं रहेगी।" "पट्टमहादेवीजी के आशय को दासोजजी सार्थक बना देंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।" स्थपति ने कहा। "जो आज्ञा!" दासोज ने स्वीकृति की मुद्रा में सिर झुकाया। उसके मन में शान्तलदेवी की बात बार-बार दुहरा जाती थीं। "कला केवल भंगिमा में नहीं है। जब वह क्रियात्मक होती है तब कला का उद्भव होता है।" यह भाव उसके मन में स्थायी हो गया। वैसे ही गदग के शिल्पी मल्लियपणा की बनायी मूर्ति वेणुधरा, रूवारि जगदन काटोज के पुत्र सरस्वती चरण-सरोज-भपर, सुप्रसिद्ध नागोज की बनायी लास्य मनोहरा, शिल्पी बेचम का डमरू नृत्य, डमरू नृत्य की अलग-अलग भंगिमार रूपित करनेवाले शिल्पी मल्लण्णा के शिल्प, वैसे ही प्रख्यात शिल्पियों के केसरि नाम से सुप्रसिद्ध पदरि मल्लोज, शिल्पी-मुखतिलक सुप्रसिद्ध वर्धमानाचारि, कलियुग-विश्वकर्म के नाम से विख्यात मासन शिल्पी, शिल्पव्यात्र कुमारमाचारि, विरुदांकित शिल्पी मुकुटमणि गंगाचारी, शिल्पकण्ठीरव बालरदेव, और अन्य शिल्पी, जो इतने प्रसिद्ध नहीं थे, फिर भी श्रेष्ठ शिल्पी थे-गुम्म औरण, कल्कणी के माचोज, गंगाचारी का भाई कौवाचारी, भण्डारि मधुवण्णा, यल्लणा का पुत्र मसद आदि शिल्पियों के द्वारा उत्कीरित शिल्प-मूर्तियाँ-जैसे शुकभाषिणी, ताण्डवेश्वरी, गानलोला, वीणापाणि, नग्नप्रिया, हाव-विलासिनी, अलंकारप्रिया, दर्पणामोदा, कोरबंजि, नागवीणा-प्रिया, शकुनशारदा, फल-पुलकिता आदि मूर्तियों को देखकर अपना सन्तोष व्यक्त करके तृप्त हुए। उदयादित्य ने कहा, "स्यपतिजी, इन विग्रहों को मन्दिर के बाहरी आवरण पर सजा देने से मन्दिर सजी-धजी सुन्दरी की सरह विशेष आकर्षक और सजीव हो उठेगा।" 368 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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