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________________ " आपकी यह विनती हमारे यादवपुरी जाने के पहले ही आयी थी । परन्तु इस तरह का एकान्त दर्शन पोय्सल राजमहल की स्त्रियाँ नहीं दे सकतीं। महासन्निधान स्वीकार करें तो बात अलग है।" शान्तलदेवी ने कहा । 44 'तब तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकेगी। सन्निधान स्वीकार कर लें तो मैं कृतकृत्य होऊँगा । शायद इससे मेरा जीवन भी बदल सकता है। अब तक मेरे हृदय में जो शून्य- भरा बैठा है उसे दूर करने में भी यह एकान्त सन्दर्शन सहायक बन सकता है । मुझ पर विश्वास हो तो एकान्त दर्शन की कृपा करें। " " पट्टमहादेवी के साथ जो भी रहे, आपका कोई रहस्य खुलेगा नहीं । इसलिए कोई साथ रहे, इससे आपका क्या? उनसे आप जो निवेदन करना चाहेंगे उसे बेधड़क कह सकते हैं. स्थपतिजी!" उदयादित्य ने कहा । "मुझे रीति-नीति का परिचय नहीं - ऐसा अरसजा या पट्टमहादेवीजी न समझें ! मेरी इस विनती में मेरी कोई दुर्भावना नहीं है। कृपा करेंगी तो मेरा सौभाग्य होगा। नहीं तो मेरे जीवन का कोई भविष्य नहीं। अभी जैसा हूँ वैसा ही रहना अपना दुर्दैव समझकर चुप हो रहूँगा।" स्थपति ने कहा । " आपके भविष्य को सुन्दर बनाने में सदा मेरा सहयोग रहेगा। परन्तु व्यावहारिकता को अपने स्थान से लाँघ नहीं सकती। इसलिए औचित्य का प्रश्न है। आपकी विनती राजमहल के व्यवहार से भिन्न है, इसलिए एकदम कोई बात इस सम्बन्ध में नहीं कह सकती। अपने स्थान पर में अपनी आन्तरिक तृप्ति मात्र से कार्य सँभालकर सन्तुष्ट नहीं हो सकती। मेरा व्यवहार कभी किसी ओर से आक्षेप का कारण न होना चाहिए। इसलिए यह पूरी गम्भीरता से सोचकर निर्णय करने का कार्य है । सोचकर बता दूँगी। अब उन तैयार मूर्तियों को देखें, चलिए!" शान्तलदेवी ने कहाँ । पहले दासोज के कृति-निर्माण-स्थान में गये। केश शृंगार, किरातिनियों की मूर्तियाँ तैयार थीं। एक और को स्थूल आकार दे रखा था, जिसे शुद्ध आकार चमक देकर भाव भरना शेष था। सिद्ध मूर्तियों पट्टमहादेवी को पसन्द आयीं । एक अर्धसिद्ध मूर्ति के वस्त्र को एक बन्दर दूर से खींचता हुआ-सा एक विग्रह बना था। बन्दर की इस खिलवाड़ की प्रतिक्रिया दिखाने के लिए उसे मारने के उद्देश्य से उस विग्रह का बायाँ हाथ मारने की भंगी में उठा था। शान्तलदेवी ने पूछा, "इसका उद्देश्य क्या #?" " चित्र रचना करनेवाले ही को यह विवरण देना चाहिए।" दासोज ने कहा । स्थपति को कुछ संकोच हुआ। इस देव मन्दिर में बहुत स्त्री मूर्तियों के रूप नग्न हैं। उनमें किसी के बारे में न पूछकर इसके बारे में ही यह प्रश्न क्यों ? यही विचार उनके मन में आ रहा था। पट्टमहादेवी शान्तला भाग तोन :: 367
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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