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________________ देना पड़ा। इसमें आचार्यजी की सम्मति हैं- ऐसा आपको लगा हो तो वह ठीक महादेवी को एक अत्या पूजनीय व्यक्तित्व मानते हैं, इसी नहीं है। "P दृष्टि से देखते हैं। इसलिए इस विवाह का... बीच ही में शान्तलदेवीजी ने कहा, "मैंने महामातृश्री को जो वचन दिया है उसे पालन करना है। उस वचन-पालन के लिए मैं सर्वस्व त्याग के लिए भी तैयार हूँ। मैं अपने और सन्निधान के मन में किसी भी कारण से क्यों न हो, परस्पर विरोध के लिए स्थान नहीं दूँगी। इसीलिए उनका जो भी निर्णय होगा उससे मैं सहमत हूँ । और क्या ?" " 'और कुछ नहीं! " शान्तलदेवी उठ खड़ी हुई। आण्डान भी उठा, हाथ मलने लगा। शान्तलदेवी ने इसे देखा और पूछा, "कुछ और हो तो कहिए। सन्निधान उपाहार के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। " "इतनी सब बातें हुईं फिर भी किसी ने पूछा तक नहीं कि वह कम्या कौन है।" धीमी आवाज में उसने कहा । " वह सन्निधान का ही चुनाव है न? इस बारे में हमें क्या करना है ? उपयुक्त समय पर वह स्वयं पता लग जाएगा। अच्छा!" शान्तलदेवी राजमहल में चली गर्यो । आण्डान धीरे से राजमहल से बाहर चला गया। 1 यादवपुरी के राजमहल में विट्टिदेव लक्ष्मीदेवी का पाणिग्रहण शान्तलदेवी की इच्छा के अनुसार बिना किसी विशेष धूमधाम के सम्पन्न हुआ। दोनों रानियों ने परिस्थिति के अनुसार अपने को ढाल लिया; फिर भी उनके मन में यह भावना रही कि जिसके कुल वंश आदि का पता तक नहीं है—ऐसी लड़की रानी बनी है न ? सब सम्पन्न होने के बाद उन्हें जैसा लगा था; उसे खुलकर पट्टमहादेवी से कह भी दिया। शान्तलदेवी ने कहा, "इसमें मुख्य बात है कि उस कन्या ने सन्निधान के हृदय को छेड़ने की कोशिश की। वह किसी वंश की हो, उसके जन्मसमय का योग ही ऐसा होगा कि उसे रानी बनाना चाहिए। मुझे तो यही लगता है कि इसमें उस तिरुमलै के तिरुवरंगदास का बहुत बड़ा हाथ है। आचार्यजी या उनके शिष्य आण्डान की तरह वह शुद्ध प्रकृति का व्यक्ति नहीं। उसके चेहरे पर शरीर पर ये तिलकादि केवल व्यापार के लिए हैं। वह इन बाह्याचारों का व्यापार करता है, 362 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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