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________________ शान्तलदेवी ने प्रश्न किया, "इस विवाह की सूचना आचार्यजी की ओर से है?" बिट्टिदेव ने जिज्ञासा की दृष्टि से उसकी ओर देखा। आण्डान ने कहा, "यह सांसारिक विषय है। इस विषय में कभी भी आचार्यजी कोई सूचना किसी को भी नहीं देते। वे स्वयं दाम्पत्य जीवन की कड़वी पूंट पीकर संन्यासी बने हैं। इसके अलावा उनकी पत्नी भी एक ही थी। हमने जो सलाह दो उस पर सन्निधान से सोच-विचार करने का अनुरोध किया है। 'पनमहादेवीजी भी स्वीकार करें तो कोई अड़चन की मुझ ६ मा को हम- द. का। मैंने ही आचार्यश्री से कहकर इस विवाह के लिए उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। शेष सभी बातें पट्टमहादेवी की स्वीकृति पर निर्भर हैं।" "सन्निधान की किसी भी इच्छा का विरोध पट्टमहादेवी नहीं करेगी।" शान्तलदेवी ने कहा। "इसका तात्पर्य तो यही है कि सारा उत्तरदायित्व स्वयं सन्निधान का है।" गंगराज ने यह कहकर अपनी राय बता दी। "सन्निधान को और भी इस विषय पर सोच-विचार करना हो तो सोचकर निर्णय कर सकते हैं। हम सब सन्निधान की इच्छा को स्वीकार करेंगे। अब आज्ञा हो तो सभा को विसर्जित किया जाय।" सभा विसर्जित हो गयी। आण्डान वहीं खड़ा रहा। गंगराज ने पूछा, "और कोई बात?" उसने कहा, "सम्भव हो तो पट्टमहादेवीजी से बात करना चाहता था।" गंगराज ने आण्डान को बरामदे में बैठाकर पट्टमहादेवी को बताया। वे गंगराज के साथ बरामदे में आयीं। उनके साथ रेविमय्या भी था। गंगराज पट्टमहादेवी की आज्ञा लेकर चले गये। आण्डान को बैठने के लिए कहकर स्वयं पट्टमहादेवी भी बैठ गयीं। रेविमय्या दूर पर खड़ा रहा । शान्तलदेवी ने बात आरम्भ की, "कहिए क्या बात है?" __ "इस विषय को जब मैंने आचार्यजी के समक्ष रखा तब उन्होंने मुझसे एक बात कही थी, उसे आपसे निवदेन करना है।" 'कहो!" "आचार्यजी ने कहा कि आण्डान, इस विषय में तुमने और तिरुवरंगदास ने स्वरा से काम लिया है। पहले पट्टमहादेवीजी से विचार-विनिमय करना चाहिए था। वे दूरदृष्टिवाली हैं। उनके प्रत्येक कार्य में यह बात दृष्टिगोचर होती है। उनका अपना व्यक्तित्व है। स्वभाव हठीला होने पर भी उसका फल द्वेष में परिणत न होकर प्रीति में प्रेम में परिणत होता है। वह उनकी उदारता है, त्याग का फल है। इसलिए वे मन से इसे स्वीकृत नहीं करेंगी तो इस विचार को आगे नहीं बढ़ाना होगा। इसीलिए पट्टमहादेवीजी को यहाँ तक यात्रा करने का कष्ट पट्टयहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 361
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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