SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तभी भोजन के लिए बुलाया आ गया। शान्तलदेवी भोजन करने चली गयीं। दूसरे दिन दोपहर को सभा बैठी। प्रधान गंगराज, पुनीसमय्या, सुरगेय नागिदेवण्णा, दण्डनायक, बिट्टियण्णा, आण्डान, धर्मदर्शी तिरुवरंगदास, उदयादित्य, पट्टमहादेवी शान्तलदेवी, रानी बम्मलदेवी, रानी राजलदेवी; सभी सभा में उपस्थित रहे। महाराज बिट्टिदेव तो थे ही। सारी बातों पर खुलकर विचार हुआ। उदयादित्य ने कहा, "इस विवाह की आवश्यकता नहीं। पोयसल राज-घराने में धर्म के नाम से किसी कार्य को धूम-धाम से मनाने की परिपाटी नहीं है। कल यही छोटों के हाथ अस्त्र बनकर धर्म-जिज्ञासा, ऊँच-नीच, श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ-इस प्रकार के वाद-विवाद के लिए अवसर देकर परस्पर ईर्ष्या-द्वेष उत्पन्न करने का साधन बन जाएगा। इसलिए अभी सन्निधान इस पर पुनर्विचार करें तो अच्छा है।" इस ढंग से उन्होंने अपनी राय प्रस्तुत की। गंगराज ने कहा, "राजाओं की अनेक रानियाँ रह सकती हैं, इसके लिए समाज ने स्वीकृति दी है। राजा ही क्यों, हम जैसे सामाजिकों को भी वह छूट है। खुद मेरी ही दो पत्नियाँ रहीं। ऐसी स्थिति में विवाह का विरोध हम नहीं कर सकते। परन्तु ऐसे विवाहों में राजनीतिक कारणों की ओर विशेष ध्यान दिया जाना परम आवश्यक है। इसी प्रकार हमारा बल बढ़ाने में हार्दिक सहायता मिलने के कारण रानी बम्मलदेवी और रानी राजलदेवी भी आज पोय्सल रानियां बनी हैं। इसके लिए पट्टमहादेवी ने सम्मति दी। परन्तु उदयादित्यरस के अनुसार धर्म के नाम से यह काम होना उचित है या नहीं, यह विचारणीय है। उनके कथन के अनुसार सूक्ष्म धार्मिक बातों को लेकर संकीर्णता बढ़े तो इससे राष्ट्र के लिए संकट हो सकता है और फिर, पोय्सल राष्ट्र का नाम मत-सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध है। उससे किसी के आन्तरिक या सामाजिक अथवा राजनीतिक जीवन में कभी कोई अड़चन नहीं रही है।" सुरिगेय नागिदेवण्णा ने कहा, "आचार्यजी के पोयसल राज्य में आने के बाद धार्मिक चेतना जाग्रत हई है, वह किसी तरह के ईर्ष्या-द्वेष का कारण नहीं बनी है। अनावश्यक बातों को सोचकर आशंकित होना अच्छा नहीं। इसमें सबसे मुख्य बात सन्निधान की इच्छा है। हम सब सन्निधान के इच्छानुवर्ती हैं न? सन्निधान इस सम्बन्ध में पूर्वापर विचार कर चुके हैं। तब यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें प्रोत्साहन दें।" पुनीसमय्या ने कहा, "विवाह सन्निधान का अपना विषय है। इस विषय में उनके परिवारियों की स्वीकृति हो तो इस विषय पर चर्चा की आवश्यकता हो नहीं। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :; 359
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy