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________________ में रह गयी। उन्होंने कहा, "भोजन का भी समय हो आया है, साथ-साथ सुबह से उद्यान में टहलते हुए थक भी गयी होंगी न? ठीक, वहीं चलेंगे।" "थक जाने के लिए न तो हम वृद्धा हैं, न ही बच्ची।" बम्पलदेवी ने कहा। .. बिट्टिदेव ने तुरन्त उत्तर नहीं दिया। आगे बढ़ने से शान्तलदेवी रुकी। बम्मलदेवी की ओर देख फिर बिट्टिदेव की ओर दृष्टि डाली। वह धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ाने लगे। अम्मलदेवी के कहने की रीति और महाराज का मौन इन दोनों के पीछे कुछ बात होगी-यों सोचकर शान्तलदेवी ने कहा, "जो भी हो, सन्निधान की पाणिगृहीता होकर हमने अपने सर्वस्व को अर्पित किया है न? उनकी इच्छानुवर्तिनी ही हैं हम। शायद सन्निधान को बहुत भूख लगी होगी। हमें भी पंक्तिलाभ देने की दृष्टि से इधर पधारे हैं। हाँ, चलो बम्मलदेवी।" कहती हुई आगे बढ़कर दासच्चे को पुकारा। दासव्ये जो दूर थी, भागी-भागी आयो। "दौड़कर जाओ। शीघ्र ही भोजन की तैयारी करने को कहो हम अभी आ ही रहे हैं।" शान्तला ने आदेश दिया। "भोजन की तैयारी हेतु हमने अभी आदेश दिया है।" बिट्टिदेव ने कहा। उनकी ये बातें भागनेवाली दासन्चे को नहीं सुनाई पड़ी होंगी। ___ "देखा बम्मलदेवी, मैंने ठीक कहा न?" कहती हुई शान्तलदेवी मुस्करायीं और आगे बढ़ी। बिट्टिदेव और बम्मलदेवी दोनों उनके पीछे चलने लगे। ___भोजन मौन ही हुआ। बीच में एक-दो बार बिट्टियण्णा ने ही युद्ध के बारे में पूछने का प्रयत्न किया था। बिट्टिदेव ने पूछा, "क्यों, मायण और चट्टला ने कुछ नहीं बताया?" "प्रत्येक अपनी जानकारी के अनुसार ही तो बता पाएगा। उससे पूर्ण चित्र उपस्थित नहीं होता। इसलिए इच्छा हुई कि सन्निधान के मुँह से सुनें।" बिट्टियण्णा ने कहा। __ "रानीजी हमारे साथ युद्ध-शिविर में रहीं, उनसे पूछो विस्तार के साथ बता देंगी।'' कहकर बिट्टिदेव ने उस बात को वहीं समाप्त कर दिया। बिट्टियण्णा ने पूछा, "हमें यहाँ तक बुलवाने का कारण...?" "उसे अभी तक पट्टमहादेवी को ही नहीं बताया जा सका है, तुम्हें उनसे भी अधिक विकलता है। क्यों है न?" बिट्टिदेव ने कहा। बात वहीं रुक गयी। आगे पूछने के लिए उसके पास और कुछ था ही नहीं। मौन में ही भोजन चला। उसके बाद सब अपने-अपने विश्रामकक्ष की ओर चले गये। सेविका ने आकर शान्तलदेवी से कहा, "आधे घण्टे के बाद सन्निधान ने यहाँ पधारने के लिए कहा है।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 347
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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