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________________ दूसरे दिन भोजन के समय महाराज विट्टिदेव, सचिव नागिदेवण्णा, आचार्य के शिष्य आण्डान आदि यदुगिरि से यादवपुरी आये। राजमहल में प्रवेश करते ही पट्टमहादेवीजी के पहुंच जाने की बात महाराज को मालूम हुई। आण्डान महाराज की अनुमति लेकर धर्मदर्शी के यहाँ चला गया और सचिव अपने घर। __ महाराज को पट्टमहादेवी से मिलने की तीव्र लालसा थी। वे उनसे मिलने के लिए उन्हीं के विश्राम-कक्ष में गये। वे वहाँ नहीं थीं। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि वे रानी बम्मलदेवी के साथ राजमहल की वाटिका में गयी हैं। सेविका ने कहा, "जाकर बुला लाती हूँ।" महाराज ने कहा, "हम स्वयं वहाँ जाएँगे। जल्दी भोजन की तैयारी हो।" के वाटिका की ओर चल पड़े। वाटिका के द्वार से उन्होंने प्रवेश किया ही था कि सामने से शान्तलदेवी और बम्मलदेवी आती हुई दिखाई पड़ों। सामने आते हुए महाराज को देख दोनों मुस्कुरायों मानो उनका स्वागत कर रही हों। "सन्निधान को यहाँ तक क्यों आना पड़ा? कहला भेजते तो स्वयं ही चली आती। सन्निधान के आने की बात हमें पता ही नहीं लगी। मेरे यहाँ आये दो दिन हो गये। कल पूरा समय पहाड़ पर बिताया; पुरानी स्मृतियों में खो गयी। सन्ध्या लक्ष्मीनारायण मन्दिर गयी। दर्शन किया। मैंने जिस उद्यान की योजना अनायी थी यह कैसा है, यह देखने की इच्छा हुई। सुबह के कार्यों से निपटकर अल्पाहार सेवन के बाद इस तरह चली आयी।" संक्षेप में शान्तलदेवी ने बताया। मन्दहास से उनके स्वागत का उत्तर देने का प्रयत्न बिट्टिदेव का था मगर उनका मन शान्तलदेवी की बातों की ओर लग गया। मन्दहास लुप्त हो गया। सहज रीति से आगे फैला हुआ हाथ अपने आप ही सिमट गया। उनकी ये क्रियाएँ शान्तलदेवी की ष्टि से छिपी नहीं थीं। अर्थात् उन्होंने देख-समझ लिया था। फिर भी उन्होंने अपनी बात जारी रखी। विजययात्रा पर जाने के पश्चात् यही उनकी प्रथम भेंट थी। उस सन्दर्शन के सुख में कडुआहर न हो-यही वह सोच रही थी। ऐसा विचार करना उनके स्वभाव के अनुरूप ही तो था। बिट्टिदेव ने प्रश्न किया, "वाटिका का विस्तार कैसा हुआ है?" "यहीं खड़े होकर बात करने के बदले राजमहल में ही चलकर बातें क्यों न की जायें? सन्निधान मार्गायास को भी चिन्ता न कर यहाँ तक पधारे. इसके लिए हम कृतज्ञ हैं।" कहती हुई शान्तलदेवी राजमहल की ओर कदम बढ़ाने लगीं। बिट्टिदेव कुछ कहना चाहते थे मगर कह न सके, मन की बात मन ही 346 :: पट्टमहादेसी शान्तला : भाग नीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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