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करने लगा। एक बार उसने चारों ओर देखा। मौन ही वह पलंग के पास जाकर खड़ी हो गयी। एचलदेवी ने उसकी ओर दृष्टि फेरी, वह खिल उठी, स्वागत किया। उन्होंने धीरे से हाथ पसारा। पास आने का संकेत किया। मुँह से आवाज तो नहीं निकली मगर होठ हिले। पद्मलदेवी की आँखें भर आयौं। सासजी के पसारे हाथ को अपने हाथ में ले पलंग से मुँह सटाकर रोने लगी।
एचलदेवी का दूसरा हाथ धीरे से पद्मलदेवी के सिर पर गया और सहलाने लगा। अन्य किसी ने कोई सान्त्वना की बात नहीं कही। उमड़नेवाले दुःख के आँसू उमड़-उमड़कर बह जाएँ तब मन एक भार उतर जाने से हलका हो आता है, यही सबकी भावना रही। उमड़ते हुए दुःख का बोझ कम होने पर पद्यलदेवी ने धीरे से सिर उठाया।
शान्तलदेवी उनके पास आयों और बोली, ''उसिर के कारण हुन थक गयी होंगी। गरम पानी से स्नान अनुकूल होगा। स्नान के बाद भोजन कर आराम करें।"
''मुझे अब कुछ नहीं चाहिए। हाय ! मैं कैसी पापिन हूँ। उनके मुँह से एक बात तक सुनने का मेरा भाग्य नहीं रहा।..." कहते-कहते उसका गला भर आया, मुँह से बात नहीं निकली, जार जार रोने लगी। मुंह पलंग में छिपा लिया। धीरे-धीरे हिचकियाँ लेना कम हुआ। चारों ओर मौन फैल गया। थोड़ी देर में राजमहल के पण्डितजी आये। शान्तलदेवी पालदेवी के कन्धे पर हाथ रखकर कान में धीरे से बोली, "पण्डितजी आये हैं, दवा देनी है। कुछ इस तरफ आएँ तो अच्छा हो।"
"मैं दवा दे सकती हूँ?" पद्मलदेवी ने एक तरफ कुछ सरककर पूछा।
"ओह, उसमें क्या है ! नयी दया तैयार कर लाये हैं. प्रथम बार वे ही दवा देते हैं। फिर उनके कहे अनुसार हममें से कोई देती रहे । तब आप भी तो दे सकेंगी न? वे अब नयी दवा तैयार कर ले आये हैं। उनके कण्ठनाल का स्पन्दन रुका हुआ है, इससे आवाज नहीं निकलती। उसे स्पन्दित करने के लिए खास बूटी का पता लगाकर रसौषधि तैयार कर लाये हैं। थोड़ी देर के लिए इस तरफ आइए। चट्टले, उस आसन को वहाँ पास रखो। उस पर पण्डिजी अपनी दवाओं की पेटी रखेंगे।'' शान्तलदेवी बोलीं। पद्मलदेवी वहाँ से सरककर शान्तलदेवी के पास खड़ी हो गयी।
जगदल सोमनाथ पण्डित ने जो दवा तैयार की थी उसे एक छोटी तश्तरी में शहद में मिलाकर महामातृश्री को जीभ पर लेप किया। दवा कुछ तेज थी इसलिए जोर से साँस निकल आयी। उन्होंने उनके सिर को वैसे ही धीरे से हलके दबाकर हाथ फेरा। कुछ ही क्षणों में एचलदेवी की आँख लग गयी। और नोंद भी आ गयी। साँस जोर-जोर से लेने लगी थीं।
पण्डितजी ने कहा, "अब वे कम से कम एक प्रहर सोएँगी। जगने पर
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34 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन