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________________ सम्भव है? कलाकार का यह प्रवृत्ति-लोप कला के प्रति द्रोह है न? साधारण मनुष्य पैदा होता है, काम करता है, खाता है, मरता है। ऐसे का जन्म लेना, मरना गणनीय नहीं। क्योंकि वह अपनी देन के रूप में कुछ भी नहीं रखता और कुछ भी स्थायी वस्तु छोड़कर नहीं जाता। परन्तु कलाकार ऐसा व्यक्ति नहीं। उसकी देन पीढ़ी-दर-पीढ़ी आनन्द जीवित रखती हैं। ऐसी वीक्षक-दृष्टि के विकास करने की प्रवृत्ति को नष्ट कर देने से महती हानि होती है, यह कला के प्रति महान् अन्याय है। आपके स्वयं के जीवन में दुःख-दर्द को कलाकृतित्व शक्ति के लिए बाधक नहीं होने देना चाहिए। आपको तो कोई अन्तर नहीं, लेकिन आपकी देन स्पष्ट अभिव्यक्ति न हो तो राष्ट्र उससे वंचित रह आएगा। इस तरह की गम्भीर हानि नहीं होनी चाहिए। आपका वैयक्तिक दुःख भी महत्त्वपूर्ण है, लेकिन उसे इस कार्य में बाधक नहीं बनना चाहिए। दस ओर ध्यान दीजिए। बात बहुत लम्बी हो गयी। अब रतजगा कर आपने जो नयी सृष्टि की है, उसे देखें।" शान्तलदेवी ने कहा। राति ने त्रिों पुलिन्दा देते हुए कहा. "इनसे लक्ष्य नहीं सधता इसलिए यदि सन्निधान अस्वीकार करें तो मुझे दुख नहीं होगा। परन्तु एक विनती है। सन्निधान इस काम में सहायता देते रहने से मना न करें, वह मिलती रहे।" स्थपति ने धीरे से कहा। "मैंने महासन्निधान एवं श्री श्रीआचार्यजी को वचन दिया है कि इस मन्दिर को सुन्दर-से-सुन्दर बनाने के लिए जितना मुझसे हो सकेगा, वह सब करूंगी। मन्दिर को सुन्दर बनाने के किसी भी कार्य में मैं पीछे नहीं रहूँगी। इस सन्दर्भ में स्थपतिजी से एक बात और कहना चाहती हूँ।" यह कह वे रुक गयीं। पट्टमहादेवी की बातों को स्थपति और बिटियण्णा एकाग्रभाव से सुनते रहे, परन्तु बात रुकते ही दोनों ने प्रश्नार्थक दृष्टि से देखा। शान्तलदेवी के यों चुप हो जाने के पीछे कोई कारण होना चाहिए। इसलिए उन्होंने स्थपति को परीक्षक-दृष्टि से देखा। बात आगे न बढ़ाकर उसने जो चित्रों का पुलिन्दा दिया था उसे देखने में लग गयीं। बिट्टियण्णा ने भी उसे देखा। फिर पट्टमहादेवी के पास अपने आसन को सरकाकर बैठ गया। देख चुकने के बाद, स्थपति से प्रश्न किया, "आगे?" शिल्पी कुछ हक्का-बक्का हो गया, इधर-उधर देखकर बोला, "आप ही बताएँ।" ठीक इसी वक्त बाहर चार छ: घोड़ों के आने की आवाज सुन पड़ी। शान्तलदेवी ने कहा, "क्या है, जरा देखो बिट्टी!" मन्दिर के इस स्थान पर कभी इस तरह घोड़े नहीं आये थे। 310 :: पट्टयहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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