________________
"अच्छा स्थपतिजी, वैसा ही कीजिए।" शान्तलदेवी ने कहा।
"युद्धशिविर से बल्लू के माँ-बाप की कोई सूचना मिली है?" संकोच के साथ स्थपति ने पूछा।
"हाँ मिली है, वे सुरक्षित और सकुशल हैं।" । "वे छूटे कैसे-जान सकता हूँ?"
"अपने ही प्रयत्न से। वे यदि बन्दी होने के कारण घबरा जाते तो हमें वे वापस ही नहीं मिलते। बड़ी निर्भीकता से उन्होंने अपनी योजना बनायी और उसमें सफल भी हो । जान्यो : उनकः अप पाश.वाद। एका को कोई जगह नहीं। धैर्यवान वे हैं ही। कछुए की तरह डरकर हाथ-पैर समेटकर बैठनेवाले जीव नहीं।" शान्तलदेवी ने कहा।
"उनके बारे में जब से जाना है तब से उनको देखने की आकांक्षा बड़ी तीव्र है और कुतूहल भी रहा है।" स्थपति बोले।
__"वह समय भी दूर नहीं है। क्योंकि चोल राजा के प्रतिनिधि भाग गये और गंगराज आदि ने शत्रुओं का दूर तक पीछा किया है, यह समाचार मिला है। आपने जो भविष्यवाणी की थी उसके सत्य होने का समय निकट ही है।"
"ज्योतिषशास्त्र झूठा नहीं होता।" स्थपति ने कहा।
"परन्तु बतानेवाले को ज्योतिष का अच्छा ज्ञान न हो तो वे जो फल बताएंगे वहीं कैसे प्राप्त होगा?"
"सन्निधान का कथन सत्य है। इसीलिए मैं उस विषय में कुछ कहने नहीं जाता। सन्निधान के पितृ श्री की जन्मपत्री की बात..."
"मृत्यु और वृद्धावस्था आदि विषय पर नहीं बताना चाहिए, ऐसा है?" शान्तलदेवी ने पूछा।
"हाँ, सौधा नहीं कहना चाहिए। संकेत मात्र ही उचित हैं।"
"जब शास्त्र झूठा नहीं होता तब सत्य कहने के लिए आगा-पोछा क्यों करना चाहिए? यह सलाह असाधु है न?" शान्तलदेवी ने पूछा।
"मैं अल्पज्ञ हूँ। पूर्वजों ने जो सूचित किया है उसे 'ठीक नहीं' कहने के लिए मन नहीं मानता। फिर भी उसके लिए कोई कारण होगा।"
"अप्रिय सत्य नहीं कहना चाहिए। यही न?"
"लगता है कि वह ठीक है। एक पुरानी बात है: यह मेरे ही ग्राम में घटी थी। एक व्यक्ति ने आकर जन्मपत्री दी अपनी, और पूछा कि इसके आधार पर मेरे मातापिता के बारे में बता सकेंगे? मैंने कहा-बता सकता हूँ। तो उस व्यक्ति ने पूछा, तो बताइए कि मेरे पिता कब मरेंगे?' मुझे उसका यह प्रश्न बहुत बुरा लगा। मेरी दृष्टि लगातार उस जन्मपत्री पर लगी रही। वह कुण्डली देखकर मुझे कुछ सूझा। मेरे मुख
302 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन