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________________ "कृति चित्रित करनेवाले आप आप ही स्थपति बनेंगे तो उसके अनुसार निर्माण करने में दिशानिर्देश के लिए सुविधा रहेगी।" "उसके लिए किसी पद की क्या आवश्यकता है? कार्य के समाप्त होने तक मैं यही रहूँगा, यदि सन्निधान चाहें। स्थपति यदि कोई काम दें तो उसे भी मैं करूँगा।" " देखें, प्रभुजी होते तो मेरे लिए अधिक सुविधा होती। रेविमय्या ! जाकर देख आओ कि शिल्पी जन क्या कर रहे हैं ? तुमको स्मरण हैं न कि हमें फिर वहाँ "जाना है।" कहा। पूछा। 'स्मरण है।" कहकर वह वहीं खड़ा रहा, हटा नहीं । " क्यों ?" ++ "शिल्पीजी को भी शायद साथ ले जाना हो, इसलिए रुका हूँ। रेविमय्या ने "तुम वहाँ हो आओ तब तक यहीं रहेंगे। बाहर कौन है ?" शान्तलदेवी ने 'बोकण हैं।" 44 " तुम्हारे लौटने तक वह अन्दर आकर रहे। यही न तुम्हारी इच्छा वही करो।' रेमिय्या ने किवाड़ खोलकर अन्दर एक पैर और बाहर एक पैर रख इशारे से बोकण को बुलाया। कहा, "मेरे लौटने तक तुम यहीं रहो। पट्टमहादेवीजी का आदेश है। आओ।" बोकण के आते ही रेविमय्या चला गया। बोकण दरवाजे से सटकर खड़ा हो गया। ++ शिल्पी को मालूम नहीं हुआ, यह सब क्या हो रहा है। पूछने का साहस भी नहीं हुआ। थोड़ी ही देर में रेविभय्या लौट आया और बोला, "सभा आपकी प्रतीक्षा कर रही है। " "रेमिय्या ! तुम इनके साथ यहीं रहो। बोकण के स्वाथ में चलो जाऊँगी। जब मैं कहला भेजूँ तब शिल्पीजी को सभा में ले आना।" कहकर शान्तलदेवी उठीं। बोकण ने परदा हटाकर रास्ता बनाया; शान्तलदेवी सभा में जा बैठीं। फिर पूछा, "स्थपतिजी! सभी ने इन सब चित्रों को देख लिया ?" "हाँ" स्थपति हरीश ने उत्तर दिया। "कैसे हैं ?" शान्तलदेवी ने सीधा प्रश्न किया। F 'वृद्ध दासोजी और गंगाचार्यजी कहें।" हरीश ने कहा । "हमारी राय बाद को। हम पुराने समय के हैं: यहाँ नयी कल्पना है। इसलिए नयी पीढ़ी की राय पता लगे ।" दासोज बोले । "यह भी ठीक है। सबसे छोटे आपके कुमार चाउण हैं; वे अपनी राय पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन :: 255
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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