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________________ "कोई चिन्ता नहीं, इस चित्रकार को देखोगे तो तुम्हें विश्वास ही नहीं होगा कि यही वह महान् व्यक्ति है। उसके हाथ से खिंची एक लकीर भी एक कला बन जाती है। फिर भी वह किसी भी बात के लालची नहीं। उन्हें अधिकार, प्रशंसा आदि किसी भी बात की चाह नहीं। भरी गगरी छलकती नहीं । ऐसे व्यक्ति हैं थे । इतवार के दिन देखोगे। तुम तो पुरुष होकर भी स्त्री की सुकुमारता दिखा सकनेवाले कुशल कलाविद् हो । इन रेखाओं में प्राण भरनेवाले वह शिल्पी कल पत्थर में भी प्राण भरेंगे। ऐसों से बहुत सीखना हैं। व्यक्ति का अच्छा विकास होना चाहिए। क्रिया व्यक्तित्व का अनुसरण करती है। तुम्हें यह सब जानना चाहिए | कितना ही बुद्धिमानी और गुणी क्यों न हो, उसके साथ अनुभव की अनुभूति समन्वित न हो तो वह बुद्धिमान और गुणवत्ता इस तरह उड़ न जाय यही मेरी अभिलाषा है। सहयोग दोगे न ?" " "हाँ. धीमे स्वर में कहा । 'कोई भी काम करो उसे तृप्त मन से करो जबरन करने से कोई फल नहीं मिलेगा। न पुण्य ही मिलेगा।" 44 'भविष्य में मेरे लिए आपकी आज्ञा लक्ष्मण-रेखा हो रहेगी। उसी में अपना कल्याण मानता हूँ।” "ऐसा अन्धानुकरण भी अच्छा नहीं । यदि तुम्हें ठीक नहीं जँचे तो खुले दिल से सामने कह देना चाहिए। अपनी शंका का निवारण करो। अपनी भावना को स्पष्ट रूप से कह दो। दूसरों को भी समझने का यत्न करो। दूसरे तुम्हें भी समझ सकें- ऐसा व्यवहार करो। सब ठीक हो जाएगा। लो, यह पुलिन्दा, यह तुम्हारे अधिकार में रहेगा। आनेवाले रविवार तक इन्हें पूरा समझ लो । एक- एक चित्र को समझकर उस पर अपनी पक्की राय बना लो। इतवार को शिल्पियों की सभा में तुम्हें बोलना होगा ।" कहकर पुलिन्दा हाथ में लिये आगे बढ़ा दिया | "सुनकर लोग हँसेंगे। प्रसिद्ध शिल्पियों के बीच बोलने का मुझे क्या अधिकार हैं ?" बिट्टियण्णा ने पूछा और पुलिन्दे को नहीं लिया । " मेरे सहायक बनकर रहनेवाले तुम अगर इतने गुणी न होगे तो सब काम मुझे ही करना होगा। तब सहायक होने का क्या अर्थ ? अब जाओ मेरी मदद कर सकने का धैर्य जब तुम्हें आए तभी आना।" शान्तलदेवी ने कहा । बियिण्णा ने हाथ आगे बढ़ाकर कहा, "दीजिए।" शान्तलदेवी ने “लो” कहकर उसके हाथ में पकड़ा दिया। उसे ले वह वहाँ से निकल गया। पट्टमहादेवी को इस तरह बातचीत करते उसने कभी देखा न था । त्रुटि करने पर समझा-बुझाकर हठ करने पर मीठी-मीठी बातों से मन को रमाकर 242 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन I 1
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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