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________________ बैठा हुआ था। उसे शान्त करना शान्तलदेवी के मुख्य कर्तव्यों में एक था। उसकी पत्नी सुष्यला को कई बातें समझा-बुझाकर उसके अनुसार बरतने को कहा था और यह भी बताया था कि दीया जलने के बाद आएँगी। तदनुसार वह कुँवर बिट्टियपणा के शयनागार की ओर चल दी। वहाँ पहुँचने पर घण्टी बजी तो पट्टमहादेवो के आने की सूचना इन दोनों को मिली। सुब्बला ने बिट्टियपणा का हाथ खींचते हुए कम-से-कम द्वार तक आने के लिए कहा। वह जड़ बनकर पलंग पर ही बैठा रहा। "पति-पत्नी में क्या झगड़ा चल रहा है ?" कहती हुई शान्तलदेवी ने अन्दर प्रवेश किया। "इनका तो क्रोध सदा नाक पर ही रखा रहता है। अभी तक मैं इन्हें समझ नहीं पायी।" सुचला ने कहा। वह पति का हाथ छोड़कर कुछ दूर पर खड़ी हो गयी थी। वह भी उठकर खड़ा हो गया। "क्रोध आए, कोई बात नहीं। उसके लिए कोई कारण होना चाहिए। और हम पर उसका दुष्परिणाम नहीं होना चाहिए। स्वार्थ के कारण उत्पन्न क्रोध अनर्थकारी होता है। दूसरों की भलाई के लिए किये जानेवाले क्रोध का कुछ मूल्य होता है। अब इस हमारे छोटे दण्डनायक को किस तरह का क्रोध आया है?" शान्तलदेवी ने पूछा। "पट्टमहादेवीजी ने जो तलवार दी उसी से इस सिर को काट लें-इतना क्रोध है।" विष्टियण्णा ने कहा। उसका चेहरा लाल हो आया था। "तो सन्निधान ने जो कार्य सौंपा वह तुम्हें नहीं चाहिए, यही न?" "यह भी कोई काम है?" "बोपदेव और तुममें कितना अन्तर है आयु में?" "हो सकता है दस-बारह साल का अन्तर।" "तो वे तुमसे उम्र में बड़े हैं न?" "यह भी न समझें, ऐसा मूर्ख तो नहीं हूँ।" "तुम मूर्ख नहीं हो भई, बुद्धिमान हो। सब समझते हो। इसीलिए राजमहल ने तुम्हारा पालन-पोषण किया। तुम्हारी शक्ति-सामर्थ्य का उपयोग तुम्हारे कहे अनुसार राजमहल करे, या राजमहल और राष्ट्र के लिए जो उपयोगी हो-उसकी तुमसे अपेक्षा रखे?- तुम ही बताओ।" "राष्ट्र के लिए जान देना सबसे श्रेष्ठ है।'' "इसीलिए तुम्हें किशोर-मनस कहती हूँ। राष्ट्र के लिए जान देने का अर्थ वहीं तक सीमित नहीं जितना तुम समझ बैठे हो । उसका व्यापक अर्थ है। कुछ न कर सके तो यों ही प्राणार्पण कर देने के सिवा दूसरा कोई मार्ग नहीं-इस तरह पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 237
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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