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________________ लिवा लाने के लिए मुझे आदेश दिया गया है।" रेविमय्या ने कहा। "अभी पहुंचा; आप पधारिए।" "क्यों, घोड़े पर चलने से भय लगता है ?" "मृत्यु की प्रतीक्षा करनेवाले मुझ जैसे को किसी का भी भय नहीं। आप चलिए, मैं तुरन्त ही आऊँगा।" "इस समय अतिरिक्त अवकाश नहीं है। सन्निधान मध्याह्न के पश्चात् यात्रा के लिए कूच कर जाएंगे। पट्टमहादेवीजी की इच्छा है कि आप उनसे भी मिल लें। इसलिए आप जो कुछ लेना हो, सब ले लीजिए। इसी घोड़े पर चलते हैं।" । __ मण्डप के कोने में रखी अपनी थैली कन्धे पर लटकाकर, पत्रों का एक पुलिन्दा हाथ में ले, वह घोड़े के पास आया । रेविमय्या उसे घोड़े पर बिठाकर खुद भी सवार हो सरपट घोड़े को दौड़ाते हुए राजमहल पहुंच गया। राजमहल के पास पहुँचते ही देखा कि पोयसल सेना कतार बाँधे खड़ी है। उसे देख शिल्पी कुछ अकचका गया। वह चुप नहीं रह सका। उसने पूछा, "यह सेना क्यों?" "सन्निधान विजय-यात्रा पर आज जानेवाले हैं।" रेविमय्या ने बताया। "आज बहुत ही अच्छा नक्षत्र है। आज पूर्वाभिमुख यात्रा करनेवालों को अनन्त फल मिलेगा। कार्य सिद्ध होगा। धनराशि में चन्द्र है और गुरु का वीक्षण है। गुरु-कज परिवर्तन योग रहने से मतद्वेष निर्मूल होकर पोय्सलेश्वर के विजयी होने में कुछ भी शंका नहीं।" शिल्पी ने कहा। "तो आप ज्योतिष भी जानते हैं?" "विशेष तो नहीं।" राजभवन के महाद्वार के द्वारपालक रेविमय्या के घोड़े पर नये आदमी को देखकर चकित हुए। युद्ध के लिए तैयारी के समय कहीं से इस दाढ़ीवाले आदमी को रेविमय्या पकड़ लाये हैं! लेकिन सब मौन। घोड़े से उतरकर रेबिमय्या शिल्पी को राजमहल के अन्दर ले गया। उसे मुखमण्डप में बिठाकर स्वयं अन्दर गया और कुछ ही देर में लौट आया, फिर "आइए!" कहकर शिल्पी को साथ ले गया। मन्त्रणालय में सन्निधान और पट्टमहादेवी आसनों पर विराज रहे थे। रेविमय्या ने प्रणाम किया और "शिल्पीजी आये हैं" कहकर वह कुछ दूर पर दीवार से सटकर खड़ा हो गया। शिल्पी भौचक्का-सा ज्यों-का-त्यों खड़ा रहा। उसे शंका होने लगी कि परसों जिस पट्टमहादेवी को उसने देखा था, वह यही हैं ? उस दिन निराभरण सुन्दरीसी जो लग रही थीं वह आज सर्वालंकार भूषित हो साक्षात् लक्ष्मी-सी लग रही हैं। पोय्सलेश्वर तेजपुंज-से लग रहे हैं। इनको देख विनीत भाव से कुछ क्षण झुके रहकर प्रणाम किया। पट्टमहादेवी शान्ताला : भाग तीन :: 233
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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