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________________ "मैं मन्दिर के कार्य से परिचित हैं अवश्य, परन्तु पट्टमहादेवी की कलाकल्पना मुझमें उत्पन्न हो ही नहीं सकती। उनके यहाँ रहने पर ही मन्दिर का कार्य सुन्दर ढंग से सम्पन्न हो सकता है। इस दृष्टि से सन्निधान का कहना बहुत ठीक है। वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति की दृष्टि से मंचि दण्डनाथजी का आसन्दी प्रान्त में रहना अनिवार्य है। परन्तु पट्टमहादेवीजी को सूचना के अनुसार सन्निधान के साथ युद्ध-व्यवहार से परिचिता पट्टमहादेवीजी को अथवा बम्मलदेवीजी को रहना आवश्यक है। मन्दिर के कार्य में, राष्ट्र-रक्षा के कार्य में या सन्निधान की रक्षा के विषय मेंइनमें से सभी पर ध्यान देना आवश्यक है। इन तीनों को समुचित रीति से सम्पन्न होना हो तो बम्मलदेवीजी को साथ लेकर युद्धभूमि में मुझे सहभागी होने के लिए सन्निधान को अपनी सहमति देनी चाहिए; यही उचित है।" उदयादित्य ने कहा। "मैं भी युद्ध में जाऊँगा– यही बताने के लिए इतनी भूमिका बाँधी गयी। कोई चिन्ता नहीं। स्यादिली की सलाह जीकृति देना स्वरह से सन्निधान के लिए युक्त है।" शान्तलदेवी ने कहा। ऐसा ही निर्णय किया गया। सभा समाप्त हुई। आगे की तैयारियाँ होने लगीं। उसी दिन रात को शान्तलदेवी ने बिट्टिदेव को उस शिल्पी के बारे में कहा और बताया कि "उस शिल्पी के चित्र के आने पर निर्णय करने के लिए सन्निधान रहते तो अच्छा था। श्री श्री आचार्यजी ने यादवपुरी में जिस शिल्पी को देखा था, वहीं है। उससे बहुत उत्तम शिल्प कार्य की अपेक्षा कर सकते हैं।" "कल वह कब आएगा?" "वह नहीं आएगा। अब जैसी उससे बातचीत हुई है, उदयादित्य जी यगची के तीर पर मधुवन के उस तरफ के मण्डप में उससे मिलकर लिवा लाएँगे।" "उदय तो सुबह ही चला जाएगा। रेविमय्या को भेज दो।" "सन्निधान के साथ?" "मायण और चला रहेंगे न?" "चट्टला का बच्चा छोटा है।" "उसके पालन-पोषण का काम राजमहल को हो सँभाल लेना चाहिए।" "उसका रहना तो ठीक है। फिर भी वह शिशु की माँ है। उससे पूछे बिना हम ही निर्णय कर लें-यह ठीक है?" "अभी कहला भेजा है न!" । "आदेश देने के बदले बुलवाकर पूछ लेते तो अच्छा था। उसके जीवन के सम्पूर्ण वृत्तान्त जाननेवाले सन्निधान ने कुछ शीघ्रता ही की। स्त्री जीवन की परिपूर्णता इसी में है कि वह गर्भ धारण कर, पालपोसकर दुनिया को जो सन्तान 23d :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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