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________________ " निवेदन नहीं, अनुग्रह ।" बिट्टिदेव ने कहा । 'आप कुछ भी मान लें - 'राजा प्रत्यक्ष देवता' – ऐसा ही कुछ है न! इसीलिए यह निवेदन है। वेलापुरी के विषय में सचिव नागिदेवण्णाजी ने बहुत बताया है। याची नदी के तौर पर 'चन्नकेशव मन्दिर' इस सन्दर्भ के स्मरणार्थ बनवाने की कृपा करें। हम जिस तत्त्व का प्रतिपादन करते हैं वह जितना विस्तृत हैं उतना ही विस्तृत प्रकार उसका हो - यह हमारी आकांक्षा है। आज हमारे मस्तिष्क में अनेक विचार सूझ रहे हैं। अनेक भव्य कल्पनाएँ उत्पन्न हो रही हैं। भरत के चक्र को स्थापित कर बाहुबली स्वामी चक्रेश्वर हुए। उस सबका त्याग करके आसमान तक ऊँचा बढ़कर स्थित उनकी भव्यता हमें विदित है। जितना ऊँचा बढ़े, उतना ही विस्तृत पासपड़ोस का भू-भाग दिखता है। रेविमय्या के कथनानुसार विष्णुवर्धन महाराज ने बाहुबली को किरीट धारण कराया इसलिए और अधिक ऊँचाई से इस संसार को अब देखने लगे हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि बाहुबली छोटे हुए, बल्कि पोय्सल राष्ट्र विस्तृत हुआ। इस बात की यह सूचना है। महाविष्णु का चक्र अजेय है विष्णुवर्धन भी अजेय हैं। विष्णुचक्र यहाँ के लिए रक्षामणि जैसा है। यह सारा प्रसंग साम्य और से हुआ महादेवी का य चकित कर देनेवाला है। उनका मन बाहुबली की ही तरह भव्य है। उनका सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र, सौम्य सौगन्ध - - भव्य हैं। श्री केशव भगवान् के लिए जैसे सौम्यनायकी हैं वैसे ही पट्टमहादेवीजी महाराज विष्णुवर्धन के लिए हैं। उनसे हमारी एक प्रार्थना है। जिस दिन हम यहाँ आये उस दिन एक शिल्पी से हमारी भेंट हुई थी।" उसका किस्सा सुनाकर फिर कहा, "उसका मन पता नहीं किन कारणों से विचलित हुआ था। उसके अन्तरंग में कोई संघर्ष चला हुआ था। उसके उस मानसिक संघर्ष का निवारण करके उसकी कला का उपयोग करना चाहते थे। परन्तु वह आण्डवन् की इच्छा नहीं थी। परन्तु उसने एक बात कही थी 'कलाकार जब निर्भय होकर कला का निर्माण करेगा तब कला में शाश्वत आनन्द को रूपित कर सकेगा।' यह उसके कथन का भाव था । पट्टमहादेवीजी सभी ललित कलाओं में निष्णात हैं। उनसे यह हमारा निवेदन है। बेलापुरी में निर्मित होनेवाली चन्नकेशव सौम्यनायकी का मन्दिर आपकी कलाकल्पना का प्रतीक बनकर आचन्द्रार्क स्थायी रहे इस रूप में निर्मित हो। यह एक तरह की अनधिकार चेष्टा होगी। बाहुबली पर जो चित्त केन्द्रित हैं उसे पूर्णरूपेण इधर केन्द्रित करें - यही निवेदन है। यह एक महान् स्वार्थ हैं फिर भी कृपा करें। मतान्तरिक न होने पर भी इस विष्णु कैंकर्य को सम्पन्न करें। पत सामरस्य आदर्श बनकर प्रकाश में स्पष्ट प्रकट हो। सन्निधान कहीं भी रहें, काम होना चाहिए। इसलिए काम पट्टमहादेवीजी के हाथों सम्पन्न होना चाहिए।" आचार्य ने कहा । 206 :: महादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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