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________________ संकीर्ण विचार हमारे दिमाग में प्रवेश ही नहीं करते। हमने अपने अनुभव से एक सत्य को जाना है। अचल विश्वास का निवारण एक असाध्य कार्य है। बदलने की इच्छा जब बलवती हो तो उसे रखना भी साध्य नहीं। दोनों स्थितियाँ आन्तरिक प्रेरणा से उत्पन्न होती हैं। दोनों में एक ही तरह की निश्चित मनोवृत्ति रहती है। इसमें विलम्ब शीघ्रता के विषय को आगे करके सन्दिाधावस्था पैदा करना ठीक नहीं। प्रचार की आवश्यकता नहीं, इस बात को हम भी मानते हैं। सन्निधान और आप दोनों बड़े विचक्षण और तत्त्वज्ञ हैं। पूर्वापर विचार करके हो निर्णय करनेवाले हैं। ऐसी हालत में हमारी राय निष्पक्ष होनी चाहिए। मनुष्य का मन बहते पानी जैसा है। जिधर उतार हो उधर बहता है। उसके मार्ग को बदलना साध्य नहीं।" "बाँध बाँधकर रोका जा सकेगा न?" शान्तलदेवी ने पूछा। "पानी के प्रवाह के जोर को रोकने की ताकत बाँध में हो तो रोकना साध्य है।" आचार्य ने कहा। "ऐसी शक्ति यदि न हो तो बाँध टूटकर बड़े भारी अनिष्ट का कारण होगा • न? अबतक विश्वास पक्का रहने के कारण उसका एक निर्मुल मार्ग और गति रही। उसे रोकेंगे, बाँधेगे, इस प्रयत्न के फल में अनिश्चितता की सम्भावना नहीं है ? जैसे आचार्यजी ने बताया यह उस गाँव की शक्ति परिमाइन दुआ कि यह पन्थानुसरण एक अनिश्चितता पर अवलम्बित होकर आरम्भ होगा।" "वह अनिवार्य लगता है। फिर भी भावना गहरी हो जाय तो उसके मजबूत होने की ही सम्भावना अधिक है।" "जल्दबाजी की भावना शीघ्र कोंपल देनेवाले पौधे की तरह होती है। उसकी गहराई की परख करने जाएँ तो जड़ ही उखड़ आएगी। इसलिए वर्तमान परिस्थिति में गहराई की कल्पना करना असहज है। इसी वजह से मैंने विनती की कि जल्दबाजी न हो। इसनी बातें होने पर मन कुछ हल्का हुआ। हमें जो सूझे और जो सही लगे उसे कह देना चाहिए ताकि कल इसके लिए पछताना न पड़े। आगे स्थिति, पता नहीं कैसी हो? यह आवश्यक न मानने की निश्चित धारणा रखनेवाली मुझ जैसी के लिए भी स्थिति सन्दिग्ध है।" शान्तलदेवी ने कहा। "इसीलिए हमारा विचार है कि पति के मार्ग का अनुसरण करना ही श्रेष्ठ मार्ग है।" बम्मलदेवी ने कहा। "वह आपका मार्ग है।" बीच में उदयादित्य बोल उठे। "सो क्या वह सही मार्ग नहीं, यही आपका मतलब है ?" बम्पलदेवी ने पूछा। "मार्ग अपनी-अपनी दृष्टि से सही होता है।" उदयादित्य ने कहा। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 145
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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