SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसरण करते हुए मातृभूमि की ओर लौटना भी यह एक कारण है। 'पोयसल राज्य में शैव, बौद्ध, जैन आदि सब भत-धर्म समान रीति से गौरवान्वित हैं, वहाँ के राजा धर्मान्ध नहीं, सहिष्णु हैं यह बात हमें मालूम हुई थी। परन्तु इतनी सफलता मिलेगी-यह आशा नहीं थी। यह केवल केशव को ही प्रेरणा है।" आचार्य ने कहा। "सन्निधान चाहे किसी भी कारण या प्रेरणा से आज मतान्तर को स्वीकार करें तो उसका परिणाम क्या हो सकता है, इसपर आचार्यश्री ने विचार किया है ?" शान्तलदेवी ने पूछा। "परिणाम क्या होता है? जनता की आँखें खुलेंगी।" "मतलब यह कि जनता में अब तक जो विश्वास रहा, इस परिवर्तन से वह तितर-बितर हो जाएगा-सा आरजा को को हुन है इस पर भी विचार किया ही होगा।" "विश्वास तितर-बितर हो जायेगा-ऐसा कहने के बदले यों कहें कि नया विश्वास एक सुभद्र भूमिका पर पनपेगा।" आचार्य ने कहा। '"एक बात की ओर मैं आचार्यजी का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ। यह पोय्सल राज्य अब तक मतान्तर के झमेले में न पड़कर जो जिस मत में जन्मे, उसी में अपनी मुक्ति मानकर सौहार्दपूर्ण एवं सहिष्णुतापूर्ण ढंग से बड़ी सुगमता एवं सहजता का जीवन गुजारता आया है। यह राजघराना जिनाराधक घराना है। अब सारे जैन भतावलम्बी अपने विश्वास के बारे में राजघराने के व्यवहार को अपना आदर्श मानते हैं। ऐसे अवसर पर सन्निधान नये पन्थ का अनुसरण करेंगे, यह बात अनता को मालूम हो जाय, तब जनता में, खासकर जैन-जनता में अपने मार्ग पर अविश्वास पैदा हो जाएगा। उसका क्या परिणाम हो सकता है, इसपर विचार नहीं किया? इस राष्ट्र के चारों ओर शत्रु हैं। हमारे प्रथम बड़े शत्रु चोल हैं जो आचार्यश्री के जन्मप्रदेश के राजा हैं। आचार्यश्री के कारण यह मतान्तर हुआ तो वह रक्त की नदी बहाने के लिए आह्वान देने का-सा हो जाता है। प्रेममयी कावेरी मैया का शरीर मंगलमय होकर विराजने के बदले वह रक्ताक्त लोकर भयंकर रूप में दिखेगा। राष्ट्र की एकता की रक्षा करने के मौके पर यह परिवर्तन, मतान्तर आदि एक शाप बन जाएगा, यह मेरी निश्चित सय है। शान्ति चाहकर पधारनेवाले श्री श्री जी से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो, यह ठीक नहीं: फिर लोग कल यदि इस वजह से आचार्य की निन्दा करने लग, यह अच्छा नहीं। इसलिए मेरी इतनी ही विनती है कि मतान्तर के विषय में जल्दबाजी न हो; प्रचार तो कतई न हो।" "पट्टमहादेवी के सोचने की रीति अलग है। हमारी रीति अलग है। ऐसे 194 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy