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________________ में? कहर: शालदेश में कहा। 'पट्टमहादेवीजी जैसी की तैसी ही रहेंगी। मतान्तर के विषय में वे पति की अनुवर्तिनी नहीं होंगी। यही न?" बिट्टिदेव ने पूछा। "वह दोष मुझे न लगे ऐसा मार्ग सन्निधान निरूपित कर लें तो मैं कृतार्थ होऊँगी।" "तो यह पूर्व की ही स्थिति हुई। पट्टमहादेवीजी हमारे सुनिश्चय का विरोध करेंगी-यही न?" "विरोध करनेवाली मैं कौन होती हैं ? अपने आराध्य देव को चुनने का स्वातन्त्र्य हर व्यक्ति को है। ऐसी स्थिति में सन्निधान के स्वातन्त्र्य को छीनने की या सन्निधान को दाम्पत्य के नाम से मेरे अधिकार को छीनने की बात सही नहीं हैयह मेरी निश्चित राय है। पहले ही मैंने निवेदन किया है कि प्रजा में आन्दोलन चलाने का काम सन्निधान को करना उचित है या नहीं?—इसपर विचार कर निर्णय करें। मुझे आचार्यश्री के प्रति उतना ही गौरव है जितना अपने गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवजी पर है। किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि मैं आचार्य का विरोध करती हूँ। पोय्सलराज के लिए अभी एक महान् पर्व है। आन्तरिक रूप से एक तरह की एकता रूपित हुई है। जनता को प्रोत्साहित करके उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत की गयी है। ऐसे समय में इस मत सम्बन्धी जिज्ञासा के लिए स्थान देना युक्तियुक्त नहीं यह मेरा मत है। चाहें तो मैं इस विषय को लेकर आचार्यजी से चर्चा करने के लिए भी तैयार हूँ। मन में उत्पन्न शंकाएँ या भिन्नभिन्न भावनाएँ मन ही में चक्कर काटती हुई सड़ती रहें, इसकी अपेक्षा खुले दिल से विचार-विमर्श करना उचित होगा।" "श्री आचार्यजी को वचन देकर अब फिर जिज्ञासा करें?" कुछ संकोच मिश्रित ध्वनि में बिट्टिदेव ने कहा। "ये यदि खुले हृदय के होंगे तो बाह्म परिवर्तन से अधिक आन्तरिक भावनाओं को प्रधानता देंगे। उनके बाह्य और अन्तरंग को हमें समझने का अवसर मिलता है। हम भी कोई सर्वज्ञ नहीं। लौकिक व्यापारों का त्याग कर इस तरह चिन्तन करनेवाले व्यक्ति जब सामने हैं तब उनसे चर्चा करने में ही लाभ है। सम्भव है कि मुझमें भी परिवर्तन आ जाय या मेरी भावना को नया रूप प्राप्त हो जाय । क्योंकि मेरा विश्वास परम्परागत है । उस विश्वास के सन्दर्भ में विचार-मन्थन नहीं हुआ है। अब जब मौका मिला है तो उसका उपयोग करना चाहिए। सन्निधान इसके लिए मौका दें।" शान्तलदेवी ने कहा। बिट्टिदेव ने तुरन्त कुछ कहा नहीं। कुछ क्षणों के बाद, "हमें सोचकर निर्णय करना होगा. इसके लिए कुछ समय चाहिए।" कहकर वह मन्त्रणालय की 186 :: पट्टमलादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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