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________________ न - किसी दिन इस मतान्तर की भावना उनके मन में आ सकती हैं। मुझसे इस राज - परिवार की समरसता को धक्का कभी न लगे इसका सदा में ध्यान रखूँगी। लेकिन आप लोगों पर भी तो उत्तरदायित्व है न " - " हम उनके अनुवर्ती हैं, इसलिए मत के सम्बन्ध में अभिप्राय भिन्नता का कोई कारण ही नहीं।" राजलदेवी बोलीं । " तो भी अब तक आप लोगों को जिनाराधिका बनने की चाह नहीं हुई। अब आप लोग भी मुकुन्दपादारविन्द की आराधिका बनेंगी। यही न?" " सन्निधान जो बनेंगे, हम उन्हीं का अनुसरण करेंगी। वह पत्नी का सहज व्यवहार है।" बम्मलदेवी बोली । "तो क्या आप लोगों में मत सम्बन्धी और देव-सम्बन्धी कोई निश्चित वैयक्तिक भावना नहीं रही ?" " थी । न रहे यह कैसे ? विवाह के समय तक मायके का विवाह के बाद पतिगृह का दैव। आपको अब तक यह समस्या न थी। अब वह उत्पन्न हो सकती हैं। हमारी सलाह मान्य हो तो सन्निधान का अनुसरण करना अच्छा है।" बम्मलदेवी ने कहा । 41 'पति की अनुवर्तिनी जो नहीं होंगी वह पतिद्रोही होंगी- यही हैं न आपकी राय ?" " छिः छिः, आपके विषय में यों कहनेवालों की जीभ में कीड़े पड़ेंगे। सन्निधान का आप पर अटल विश्वास है। दैव सम्बन्धी भिन्न विचार होने पर भी परिवार में सामरस्य स्थापना करनेवाले दाम्पत्य का परिपाक आप... यह सन्निधान अच्छी तरह जानते हैं। फिर भी उस परिवार में आप तीनों ही तो रहे । आपके माता-पिता हिल-मिलकर रहे। आप उन दोनों को अत्यन्त प्रिय हैं। तीसरे के लिए वहाँ जगह ही नहीं। परन्तु यहाँ ऐसी बात नहीं। सन्निधान और हम तीन, आपकी सन्तान और आगे हो सकनेवाली सन्तान - यों दस-दस हों तो मन भी दस-दस होंगे। इसलिए यहाँ अनुवर्तन की व्याप्ति ही भिन्न है। यह भी विचारणीय है।" बम्मलदेवी ने कहा । "सब कुछ अभी जैसा है वैसा ही रहे यही उत्तम है। यही मेरी भावना है। एक तरह से हिल-मिल गये हैं। सन्निधान इसे इसी तरह रहने दें - यही उत्तम होगा । इसे छोड़कर अन्य निर्णय करें तो उसका परिणाम अनेक मुखी होकर विकृत रूप धारण करेगा। यह बात जानकर भी यदि सन्निधान अपना व्यवहार आगे बढ़ाएँगे तो ग्रही समझना चाहिए कि आगे जो होगा उसका सामना कर निवारण कर सकने का दृढ़ विश्वास उनमें है।" शान्तलदेवी ने कहा । " माने... " बात को वहीं रोक दिया ब्रिट्टिदेव ने । पट्टमहादेवीला भाग तीन : 185
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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