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________________ "हमने महालक्ष्मी का यहाँ पहली बार साक्षात्कार किया। महालक्ष्मी के ही मन्दिर निर्माण कार्य को सम्पूर्ण कर वह शिल्पी यहाँ आया था। उसे देखने के बाद मन्दिर निर्माण की बात हमारे मन में उठी। इसके अलावा हमारे आराध्य नारायण हैं। इन तीनों बातों को सम्मिलित कर विचार करेंगे। वैसे एक बात सूझती है। जिस महालक्ष्मी ने हमें दर्शन दिया, वह यहाँ स्थायी रूप से रहे, इसलिए लक्ष्मीनारायण का मन्दिर ही बनवाने का विचार है। वह हमारे श्रीवैष्णव पन्थ का भी संकेत बन जाता है।" "उचित ही सोचा है । सन्निधान से कह दूँगा।" "न, न! उनसे नहीं कहना चाहिए। वे फिर खजाने में हाथ डालेंगे। यह काम हमारा ही होकर चले। आपका वैयक्तिक सहयोग तो रहेगा ही। निर्माण करना हो तो हमारे इन निर्णयों को मानना होगा। प्रभु को मालूम न होने दें-- ऐसा नहीं। उन्होंने जो अपार धनराशि दी है उसका विनियोग, उनकी तरफ से हम आप करेंगे। आप ही कराएँगे। इस शर्त को आप स्वीकार करेंगे तभी हम इस पर विचार करेंगे।" " मन्दिर का निर्माण होना ही चाहिए। आपका निर्णय मान्य है। मैं स्वीकार करता हूँ।" " 'अच्छा. हम विचार करेंगे।" इतना कहकर आचार्यजी ने इस विषय को वहीं समाप्त किया। और भी अनेक कार्य करने थे आज इसलिए नागिदेवण्णा आचार्यजी की सम्मति लेकर वहाँ से विदा हुए। सिंह लग्न, जब लग्नाधिपति भाग्य स्थान में उच्च हो, तब राजोचित ढंग से आचार्यजी के जुलूस का मन्दिर के महाद्वार से निकालने का निर्णय हुआ। निश्चित मुहूर्त में जुलूस निकला। दण्डधारी, पताकाधारी, मशालची वस्त्रवाहक, वाद्यवृन्द, समवस्त्रधारी सैनिक, फलक-तोमरधारी, मन्त्री, दण्डनायक, सेनानायक, दोष करनेवाले ब्राह्मण, सजाये गये हाथी, घोड़े, गाय सब क्रमपूर्वक कतारों में प्रमुख राजवीथियों से होकर जुलूस के साथ निकले। राजवीथियों से होकर सार्वजनिक सभा के लिए निर्मित वेदी तक पहुँचने की व्यवस्था थी। पिछले दिन जो व्यवस्था करने का विचार था वह आज की जा सकी थी। रास्ते भर यत्र-तत्र बन्दनवार शामियाने, लीपापोती, चौकपुरा, छिड़काव आदि से राजमार्ग सज गया था। यादवपुरी के पौरों ने अपनी-अपनी श्रद्धा-भक्ति का प्रदर्शन किया। किसी भेदभाव के बिना भिन्न-भिन्न मतानुयायी, अलग-अलग सम्प्रदाय के लोग इस जुलूस में सम्मिलित थे। इर्द-गिर्द के गाँवों से भी असंख्य लोग जमा हो गये थे। कहीं भीड़ में क्रम बिगड़कर अव्यवस्था न हो, इसकी देख-रेख के लिए अच्छी व्यवस्था भी की गयी थी। पिछले दिन के कार्यकलाप में अच्चान भाग नहीं ले सका था। आज एम्बार 172 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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