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होंगे वे परमात्मा के क्रोध का भाजन होंगे।"
" तो !"
"पीछे हटनेवाले सब कर्त्तव्य-पराङ्मुख हुआ करते हैं।"
"
'सत्य कहने का अर्थ तो पीछे हटना नहीं न?"
"यह धीरता का प्रश्न हैं। यह प्रश्न पूछ सकने की शक्ति आप में है। अतः आपका मन आगे से सही रास्ता पकड़ चलेगा। अब तक दुःख का कारण बना रह सकता है, या जीवन पर उदासीनता का कोई कारण भी हो सकता है। कोई अज्ञान आपके मन को घेरे हुए था। अब वह हट गया। इस अवसर पर आपको एक बात का स्मरण रखना चाहिए। वह यह कि सत्य को छिपा रखें या सत्य का ज्ञान न हो तो हमने अभी जो कुछ कहा उसकी अनुभूति हुई होगी। दुःख दर्द
उस सत्य को बँके रखता हैं | पागल-सा बना देता है। परन्तु सत्य के लिए स्थायी भूमि जब बन जाती है, तब अपनी शक्ति का परिचय हो जाता है। तात्पर्य यह कि वह व्यक्ति अपने आपको पहचान लेता है। अपने आपको जब समझ जाता है, तब ज्ञानी बन जाता है। यह एक विपरीतार्थ सा लगता होगा; मगर यह अनुभवसिद्ध बात है। हमारी इन बातों को आप अपने विशिष्ट जीवन के साथ समन्वित कर विचारपूर्वक विमर्श कर देखिए। तब आपको पता लगेगा कि ज्ञानी भी इन कारणों से सत्य के स्थायित्व को न पाकर पागल-सा बरत सकता हैबरतता है । परन्तु उस पागलपन से मुक्ति पा लेना हो तो फिर उसी सत्य का अवलम्बन करना होगा। समझे ! "
"
'प्रकाश मिल गया; इससे अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जा सकती है। "
" प्रयत्नशीलता ही लक्ष्य की ओर बढ़ने का मुख्य साधन हैं। "
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'ठीक!"
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'अब बताइए आप कौन हैं ?"
है ?"
"
"एक पान्थ।"
"
'अभी तक मन की वह डाँवाडोल स्थिति गयी नहीं। अच्छा रहने दीजिए। आपका व्यवसाय ?"
" शिल्पी ! '
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'भगवान् हो की सृष्टि करनेवाले।"
"यह बहुत बड़ी बात है। बड़ों के मुँह से छोटी बात कैसे निकल सकती
"यहाँ कब आये ?"
"
'आज ही अभी कुछ समय पहले।"
150 पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
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