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________________ गयी थीं। वह आनर्तनशाला मूर्तिमान कला के रूप में शोभित हो रही थी। थोड़ीथोड़ी दूर पर सुन्दर कलापूर्ण स्तम्भ और उन स्तम्भों के पास आदमी की ऊँचाई के बराबर दीप दान, दीपों के प्रकाश से झिलमिल कर रहे थे। वेदी के सामने आँखों शाखा की तरह लगनेवाले गज-स्तम्भों की शाखाओं पर दीप जल रहे थे । को आराम देनेवाली स्वर्णाभ दीपकान्ति से सारी आनर्तनशाला द्योतित हो रही थी। उस जगमग को देख आचार्य का शिष्य एम्बार अचकचाकर रह गया। वह भूलोक भूल गया, उसे लग रहा था कि वह कहीं सूर्य या नक्षत्रलोक में आ गया है। सारी आनर्तनशाला मणिमय दीपमाला से जगमग हो उठी थी। समवस्त्रधारिणी दासियाँ अन्तःपुर में उनके लिए निर्दिष्ट स्थानों में गम्भीर भाव से खड़ी, उत्कीरित प्रस्तर प्रतिमा-सी लग रही थीं। आनर्तनशाला का पूर्ण वातावरण एक नवीन गाम्भीर्य को लिये शोभित हो रहा था। बेदी के पोछे की ओर गहरे नीले रंग का रेशमी परदा, उसी से लगकर फैलाया हुआ नीले रंग के रेशम का धारीदार तोरण और दोनों तरफ गुच्छे की तरह लटकायी गयीं उसी रंग की पार्श्व - यवनिकाएँ । गहरे नीले परदे पर उसके बीचों-बीच पोय्सल व्याघ्र पताका शोभित थी। दीप सजाने की कलात्मकता के कारण व्याघ्र पताका ज्योति-वर्तुल के अन्दर सुशोभित हो रही थी। इन सबने मिलकर आनर्तनशाला के सौन्दर्य में चार चाँद लगा दिये थे । शान्तलदेवी सभी लोगों को अपने-अपने स्थान पर बैठे देखकर वेदी पर ही अपने आसन से उठ खड़ी हुईं। उनके उठते ही परातवाली दासियाँ आगे आयीं। बिट्टिदेव भी उठकर शान्तलदेवी के साथ आचार्यजी के पास गये। वहाँ जितने लोग बैठे थे, सब उठ खड़े हुए। राज-दम्पती ने राजपरिवार की रीति के अनुसार आचार्यजी के चरण धोये, आस्तरण बिछाकर, दोनों ने उनके चरणों की पूजा की। उनकी आरती उतारी। इस अवसर पर वहाँ उपस्थित राजघरानेवाले, सोमनाथ पण्डित, नागिदेवण्णा और सन्निधानों के दास-दासियाँ - इन थोड़े लोगों के सिवा और किसी को मालूम नहीं पड़ा, यह प्रसंग क्या है - जो कुछ वहाँ हुआ उसे सब लोग चकित होकर देखते रहे । पूजा की समाप्ति पर राजदम्पती ने फिर से आचार्यजी के चरण छुए। बिट्टिदेव ने नागिदेवपणा की ओर देखा । उसने वेदी के पार्श्व में स्थित अंगरक्षक अंकणा की ओर इशारा करके पास बुलाया। आते ही उन्होंने उसके कान में कुछ कहा। उसने बेदी के पास से लौटकर महाद्वार के पास जाकर सन्निधान को प्रणाम किया। समस्त्री दो सैनिक रेशम के वस्त्र से ढँके परात लेकर अन्दर आये। उनके पट्टमहादेवी शान्तला भान तीन i.
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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