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मुझे सूझ गया है। यथावसर निवेदन करूंगी। अब आप अन्दर पधारने की कृपा करें।" उन्होंने झुककर प्रणाम किया। बिट्टिदेव और रानियों ने भी प्रणाम किया। शेष सब लोगों ने भी यन्त्रवत् दोहराया। आचार्यजी ने शान्तलदेवी की ओर देखा । दो चार क्षणों के अन्तराल से वे उठ खड़े हुए।
राजमहल के वस्त्र - सज्जक ने वस्त्र बिछाना शुरू किया। उसके पीछे अंकनायक और कसवथ्य नायक चले। उनके पीछे परातें लिये दासियों और चामरधारिणी दासियाँ निकलीं। इनके पीछे रत्नखचित सुवर्णदण्डधारी भाट और करबालधारी अंगरक्षक बले और जेल सम्मर हुलाती हुई चलीं। उदयादित्य कुमार बल्लाल और कुँवर ब्रिट्टियण्णा बीच में धीरे-धीरे कदम बढ़ाते चले । राजकुमारों को अंक में लिये दासियाँ भी उनके पीछे चलीं । बिट्टिदेव और शान्तलदेवी उन राजकुमारों के पीछे चली उनके पीछे रानियाँ भी साथ चलीं। आचार्य और उनका हाथ पकड़े राजकुमारी सबसे बाद में चले। उनके पीछे सचिव नागिदेवपणा, मंचिअरस, एम्बार उनके बाद तीन दण्डनायक, श्रीपाल वैद्य, शुभकीर्ति, नयकीर्ति, गोपनन्दि पण्डित, सुमनोबाण, सोमनाथ पण्डित, वामशक्ति पण्डित चले उनके बाद गुल्मनायक कतार बाँधे श्रेष्ठि, गौण्ड, शेट्टि आदि क्रमशः ढंग से चलने लगे ।
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पूर्वायोजना के अनुसार वस्त्र - सज्जक आवर्तनशाला की ओर वस्त्र फैलाता गया। आनर्तनशाला के द्वार पर सजी हुई दासियाँ दोनों ओर खड़ी थीं। पूर्व निर्देशानुसार आचार्य एवं राजकुमारी के द्वार पर पहुँचते ही, दासियों ने उनकी आरती उतारी।
आनर्तनशाला में प्रवेश करते ही वहाँ के व्यवस्थापकों ने और दासों ने सभी आगन्तुकों को पदानुसार निर्दिष्ट आसनों तक ले जाकर बिलाया ।
आचार्य के लिए वेदी पर आसन निर्दिष्ट था। उन्हें वहाँ बिठाया गया। आचार्यजी ने राजकुमारी को अपने ही आसन पर बगल में बैठा लिया। राजदम्पती, रानो, मन्त्री आदि के लिए स्थान सुनिश्चित थे। इन सबकी निगरानी पर आनर्तनशाला में मारसिंगय्या, पद्मलादेवी और उनकी बहनें मात्रिक रहे। उन सबने आचार्य को प्रणाम किया।
आवर्तनशाला बहुत ही सुन्दर ढंग से सजायी गयी थी। तरह-तरह की पुष्प मालाओं से जगह-जगह उसकी साजसज्जा की गयी थी। अनेक रंग-बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सम्पूर्ण स्थान महक रहा था। इसके साथ तालपर्णि, गन्धसार, चम्पा, हरिवालुक, भस्मगन्धिनी आदि तरह-तरह की सुगन्धित धूपसामग्री की सुगन्धि भी मिल गयी थीं। वहाँ रहनेवालों को स्वर्गीय सुगन्धागार में रहने का भ्रम हो गया था। राजवैभन्न के योग्य रंग बिरंगी पताकाएँ जगह जगह लटकायी
36 :: पट्टमहादेवं शान्तला भाग तो