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________________ दरवाजे का परदा हिला। बिट्टिदेव का पुत्र कुमार बल्लाल घुस आया था अन्दर। उसके चेहरे पर घबराहट से पूर्ण किसी दुःख का भाव छलक रहा था। वह हाँफ रहा था। उसे वहाँ पिताजी की उपस्थिति की कल्पना नहीं थी। महाराज को देखते ही कुछ गम्भीर हो गया। सीधा पट्टमहादेवी के पास गया। घबराते हुए बोला, "माँ!" शान्तलदेवी ने मौन तोड़ा। पूछा, "क्या है, अप्पाजी ?" कुमार बल्लाल ने एक बार पिता की ओर देखा और फिर पट्टमहादेवी के कान में कुछ फुसफुसाया। पट्टमहादेवी एकदम उठकर जल्दी-से-जल्दी बाहर दौड़ी गर्थी। कुमार बल्लाल भी उनके पीछे चल पड़ा। इतना सारा क्षणभर में हो गया। इतना सब महाराज बिट्टिदेव के सामने ही हुआ। शायद उन्हें सूझा ही नहीं कि पूछे, "क्यों? क्या हुआ? कहाँ?" सूझने के पूर्व ही यह सब हो चुका था। वह भी उठकर उनके पीछे चल दिये थे। शान्तलदेवी सीधे उस घण्टी बजानेवाली दासी के पास जा पहुंचीं।। हड़बड़ामारामही हुई आयी गट्टग्गादेनी और उनके पीहे ग़जकुमार, और उन दोनों के पीछे घबरायी हुई दो दासियाँ। वे भी दुविधा में, शंकित होकर। राजकुमारी जब से बीमार पड़ी तब से राजमहल के दास-दासियों को बहुत क्लिष्ट परिस्थिति में समय काटना पड़ रहा था। सदा हैंसमुख, सबके साथ मिलनसारी रखनेवाली पट्टमहादेवी और सदा खुशी से बरतनेवाले महाराज-दोनों अब निरन्तर चिन्तित और दुःखी दिखाई दे रहे थे। नौकर-चाकर कब क्या करें, क्या कहेंऐसी दुविधा के चक्कर में पड़े हुए थे। एक तो राजमहल की नौकरी, इशारे से ही काम करना होता है। अब तो कुछ मत पूछो। आखिर ऐसा क्यों? किसी को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। सच है राजकुमारी बीमार है। किसके यहाँ बच्चे बीमार नहीं होते? सब ऐसे हो जाएँ तो दुनिया चले भी कैसे?--यह उन सब लोगों की चिन्ता थी। फिर भी उनकी चिन्ताएँ उन्हीं के मनों में घुल जाती रहीं क्योंकि कोई किसी से कहकर प्रकट नहीं कर सकते थे। राजमहल की नौकरी जो कर रहे थे! इसीलिए कहावत चली है..."राजा कहे तो राज्य काँप उठता है, बूढ़ा कहे तो दाढ़ी हिल उठती है।" आते ही शान्तलदेवी घण्टी बजानेवाली दासी के पास जा बैठी; उसके माथे पर हाथ रखकर देखा। इतने में महाराज भी वहाँ पहुँच गये। घण्टी बजाने का यह डण्डा उनके पैर से टकरा गया। बजानेवाली के हाथ से फिसलकर वह कुछ दूर जा गिरा था। उन्होंने उसे अपने हाथ में उठा लिया। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 107
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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