SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजमहल राजमहल का-सा नहीं रह गया! सर्वत्र मौन। गम्भीर गुफा-जैसा। एकाएक घण्टी बजानेवाली हड़बड़ी में घण्टी बजा उठी। उस समय घबराहट में उसे अपने बदन पर के वस्त्रों की अस्त-व्यस्तता का भी ध्यान न रहा। राजमहल के अन्दर की दासियाँ आवाज सुनकर घबरा उठीं। सारे अन्तःपुर में मौन छा गया। घण्टी की ध्वनि लहरें प्रतिध्वनित हो रही थीं। महाराज बिट्टिदेव जल्दी-जल्दी चलते हुए उस वक्त उस घण्टी बजानेवाली के निकट पहुँच चुके थे। अचानक घण्टी की आवाज कान में पड़ी तो घबराहट से उनका शरीर हिल उठा, वे वहीं खड़े हो गये। एक बार उन्होंने सिर से पैर तक उस बजानेवाली को देखा। उस दृष्टि ने उसे घबरा दिया। वह काँप रही थी। यदि एक मिनट और वे वहीं ठहर जाते तो उस दासी का धड़ाम से गिरना भी वे स्वय देख लेते। राजकुमारी के शयन कक्ष का परदा हिला और सरका, बिट्टिदेव ने अन्दर प्रवेश किया। चामरधारिणी धीरे-धीरे पंखा कर रही थी कि पसीना न छूटे और अधिक हवा न लगे। पट्टमहादेवी शान्तलदेवी बीमार बच्ची के पास पलंग पर बैठी उसके सिर पर हाथ सहला रही थीं। वहीं बैठे-बैठे महाराज को बैठने का संकेत किया, मौन ही। महाराज गुस्से से तमतमा रहे थे। कुछ बोले बिना संकेतित स्थान पर पलंग पर ही जा बैठे। बच्ची की ओर देखा। उनकी आँखें भर आयो। बोले, "देवी, हमें इस राजपद से क्या मिला? हमारी इस प्यारी बेटी की बीमारी को दूर कर सकनेवाला कोई वैद्य न हो तो वैद्यक वृत्ति ही के लिए कलंक है।" शान्तलदेवी मौन रहीं। "सभी देवी-देवताओं की मनौती मानी; सभी जगह राजमहल के नाम से पूजा-पाठ करवाया गया। फिर भी बच्ची की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। सैकड़ों वैद्य आये। सबने परीक्षा भी की। बीमारी क्या है-इसका किसी को पता तक नहीं लगा!" कहकर वे एक दीर्घ नि:श्वास लेकर सिर झुकाकर बैठ गये। शान्तलदेवी ज्यों-की-त्यों बैठी रहीं, उनका हाथ बच्ची के सिर पर ही फिरता रहा। "देवी, तुम्हारे अमृत-हस्त की इस सेवा से भी यह बीमारो यदि दूर नहीं हो पायी तो समझना चाहिए कि हमारे लिए कोई अनिष्ट होनेवाला है।" कहकर चिट्टिदेव शून्य की ओर देखते हुए मौन बैठे रह गये। शान्तलदेवी ने एक बार महाराज की ओर और एक बार अध-मुंदी आँख, बिस्तर पर पड़ी बच्ची की ओर देखा। मगर बोली कुछ नहीं। 106 :: पट्टमहादेवी शान्तला ; भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy