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________________ नने पर कछुए की तरह अपने अंग समेट लेती है और अन्तर्मुखी हो जाती है।" . चामला ने कहा। "ऐसा हैं तो कोई दूसरा ही कारण होना चाहिए, चामला। इस उत्सव के समाप्त हो जाने के बाद उन्हीं से इसका पता लगाना चाहिए। किसी भी विषय को दिल में रखकर घुटना नहीं चाहिए। इससे मन अस्वस्थ हो सकता है।" ''मेरे पूछने पर तो वह कुछ बोली नहीं। तुहीं कोशिश कर देखो।" "अच्छा, कोशिश करूंगी।" शान्तला ने कहा। पहले से चली आ रही उनकी मित्रता इस बातचीत से और भी प्रगाढ़ हो गयी। चूँकि शान्तला दोरसमुद्र में ही अब रहती थी, इसलिए निकटता स्वाभाविक ही थी। हेग्गड़ती की लड़की के साथ अपनी लड़की की इस मैत्री से दण्डनायिका चिढ़ती जरूर थी, मगर बोलती कुछ नहीं थी। 'उत्सव के सन्दर्भ में किसी के दिल को दुखाना नहीं चाहिए। यह सब समाप्त होने पर एक बार विवाह का निर्णय तो हो जाय, वाद में कहाँ किस युग को कैसे कसना होगा, उस फैसकर ही छोडूंगी। मैं छोड़नेवाली नहीं' -यही सोचकर वह इनकी आत्मीयता को सहती रही। अभी हाल में ही शान्तला ने औत्तरेय पद्धति का नृत्याभ्यास भी शुरू कर दिया था। इसके लिए दण्डनायिका बहुत लड़-झगड़े लेने के बाद राजी हुई थी। वात यह थी कि एक बार महापात्र हेग्गड़ेजी के घर शान्तला के नृत्याभ्यास के वक्त उपस्थित थे। तब उन्होंने स्वयं प्रेरित होकर कहा था-"अम्माजी! अपनी औतरेय विद्या का दान तुम्हें देने का निर्णय मैंने अभी-अभी किया है। तुम्हें मेरी शिष्या बनने की स्वीकृति देनी होगी। स्वीकृति देने के लिए मैं तुम्हारे गुरुजी से प्रार्थना करूँगा।" शान्तला के गुरु को कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन महापात्र दण्डनायक जी के घर के अध्यापक थे, अतः उनकी अनुमति लेना महापात्र को जरूरी था। शान्तला सीखना चाहती थी। उसके गुरु ने महापान के इस इरादे का स्वागत किया था। महापात्र ने दण्डनायक से स्वयं अनुमति प्राप्त की थी। कुछ महीनों तक अभ्यास भी हुआ था। शान्तला की ग्रहण-शक्ति तथा सीखने में उसकी श्रद्धा और आसक्ति से महापात्र अपरिचित नहीं थे। विषय को समझकर उसके अनुसार अनुष्ठान में शान्तला की तीव्रगति देखकर वह चकित हो गये थे। उनकी इच्छा थी कि पट्टाभिषेक के अवसर पर शान्तला भरतनाट्यप् के प्रदर्शन के साथ-साथ औत्तरेय नृत्य दिखाये। इससे औत्तरेय पद्धति में नृत्य सीखने का उत्साह पोय्सल राज्य के नागरिकों में पैदा हो जाएगा और विद्यादान करने के लिए अधिक अवसर मिलेगा-यह महापात्र का विचार था। यह सोचकर कवि नागचन्द्र और शान्तला के गुरु गंगाचारी को समझा-बुझाकर इस औत्तरेय नृत्य को भी कार्यक्रम में पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 39
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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