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________________ उसका असर राजकुमार के मन पर अच्छा पड़ेगा --यह चामब्वे का इरादा था। - इसलिए उसने महापात्र से कहलवाया भी। किन्तु पद्मला ने जब इनकार कर दिया तो दण्डनायिका को कुछ गुस्सा भी आया। असल में उसके संकोच का कारण था कि अब बल्लाल के साथ उसका पहले जैसा मेलजोल नहीं रह गया है। इसलिए बल्तान के सामने नृत्य करने का मन उसका नहीं हो रहा था। चारों लड़कियों में वह बड़ी भी थी। उसने कभी ऐसे साबजनिक समारोहों में नृत्य किया भी नहीं था। अतः बड़ी आयु की बजह से उत्पन्न सहज लज्जा और अन्य ने बता सकनेवाली अनेक भावनाओं के कारण उसने नृत्य करना स्वीकार नहीं किया था। दुःखी चामञ्चे चाहती थी कि किसी भी तरह पबला राजकुमार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल रहे। जब पद्यला गीत गाने को राजी हो गयी तो उस घोड्ना सन्तोष हुआ। वह चाहती थी कि उसकी लड़कियाँ हेगड़ती की लड़की से ज़्यादा श्रेष्ठ लगें। यूँ अब उसका मन काफ़ी परिवर्तित हो गया था। हेग्गड़ती तथा उसकी लड़की के बारे में पहले जैसा द्वेष अब उसमें नहीं था। यह भावना भी आयी थी कि वे अच्छे लोग हैं, फरेबी नहीं। मगर कर तो क्या, कोई आशंका उसके मन में दानवी की तरह हड़कम्प मचाने लगती। सोचती, युवकों का मन ज़्यादा विश्वसनीय नहीं होता। नज़र इस ओर से उस और फिर जाने में देर ही क्या लगती हैं? फिर भी डोरप्समुद्र की हाल की अनेक घटनाओं ने उसके मन में भय को भावना भर दी थी। इसलिए वह कोई भी कदम हिचकिचाकर उटाती। इसी कारण खुराई की बात वह सोच भी नहीं पायी थी। वह इतना ही चाहती थी कि बल्लाल ने उसकी लड़की को जो बचन दिया था, वह पूरा हो जाए। बानी और जो भी हो जाए तो ठीक, न हो सो भी ठीक। ___ चामला को इस बात की खुशी थी कि शान्तला के साथ इसी मंच पर चढ़ने का मौका उसे मिला हैं। अपनी इस खुशी को उसने शान्तला के सामने व्यक्त भी किया। उसने कहा, “जिस पंच को तुम्हारे चरणों ने स्पर्श किया उसी मंच पर चढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला है, शान्तला । तुम्हारी शुभकामना रहेगी तो मैं भी यशस्वी हो सकेंगी। पढ़ाते समय गुरुजी ने कहा था कि यह कला दूसरों के मन को सन्तुष्ट करने के लिए ही है। अतः कलाभ्यासियों को सार्वजनिक रूप में कला का प्रदर्शन करते हुए लजाना नहीं चाहिए।' "गुरुजी ने ठीक ही कहा। तुम्हारी दीदी भी नृत्य करती तो अच्छा था। परन्तु अरुचि होने पर कला का विकास रुक जाता है। अगर वह नृत्य करती तो बड़े राजकुमार सचमुच बहुत खुश होते।" शान्तला ने कहा। __"यह तो वह भी महसूस करती है। पहले तो उनके सामने जाने पर वह स्वर्गसुख का अनुभव करती थी। परन्तु पता नहीं आजकल क्यों वह उनका नाम ५४ :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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