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________________ 'तो शायद बलिपुर के हेग्गड़ेजी ने भेजा होगा?' मैंने फिर पूछा। युबगनीजी हँस पड़ीं। बोली, "एक साधारण हेगड़े का क्या इतना प्रभाव हो सकता है दण्डनायिका जी? प्रभु की अस्वस्थता का समाचार चालुक्य चक्रवर्ती को मालूम हुआ तो पिरिवरसी जी ने हरकारे को करहाट भेजकर वैद्य को यहाँ भिजवाया है। कुछ भी हो बड़े बड़े होते हैं। देखिए न, इतनी दूर रहनेवाले, और हपसे भी ऊंचे स्तर पर रहनेवाले उन लोगों ने हमारे लिए रुचि लेकर वैद्यजी को भेजा, ये कितने ऊँचे और गुणवान हैं। परन्तु यहाँ अपने ही लोगों को खबर देकर बुलवाना पड़ रहा है। भगवदिच्छा! प्रभु का तो यह नया ही जन्म हुआ समझो।' मुझे कुछ टीस-सी लगी। सिर झुकाकर बैठ गयी। ___'यह क्या दण्डनायिका जी, आप ऐसे क्यों बैठ गयीं? मैंने आपके बारे में तो ऐसा नहीं कहा। मेरे कहने का मात्र इतना अभिप्राय था कि आमतौर पर लोगों की मनोवृत्ति ऐसी होती है। आपकी आत्मीयता की साक्षी तो यह है कि आपको राजकुमार के जन्मदिन तक का स्मरण है। हमें क्या चाहिए दण्डनायिका जी, आपका कुशल, राजघराने का कुशल, गुरुजनों का कुशल, अधिकारी वर्ग, नौकर-चाकर, प्रजाजन इन सबका कुशल । यही न हनं चाहिए? 'यह तो सभी लोग जानते हैं, युवरानी जी।' 'मुझे इस बात पर विश्वास नहीं।' 'क्यों खुवसनी जी, किसी के विषय में...' 'निश्चित रूप से कैसे कहूँ, दण्डनायिका जी? राष्ट्र और प्रजा के हित को ध्यान में रखते हुए, पता नहीं किसे, प्रधानजी ने देश-निकाले का दण्ड दिया है। सुबह प्रभु ने युवराज को यह बात बतायी है। उन्होंने यह भी बताया-देखो, हम इतने प्रेम और वात्सल्य से व्यवहार करते हैं फिर भी कुछ स्वार्थी लोग हमारा अहित चाहते हैं। यह तो हमारा और हमारे इस राज्य का परम सौभाग्य है कि हमारे प्रधानजी जैसे निःस्वार्थ, निस्पृह व्यक्ति के नेतृत्व में राज्य का कारोबार चल रहा है। आपके भाईजी की इस निस्पृह सेवा से आपको खुशी नहीं हैं?' युवरानी ने कहा। 'देश-निकाले का दण्ड टेना हो तो...अपराध भी गुरुतर ही होना चाहिए। किसने ऐसा अपराध किया? कुछ पता...' ___ 'हमें मालूम नहीं। हम कैसे करें? प्रभु ने जब आपके भाईजी की निष्ठा की प्रशंसा करते हुए प्रसंगवश यह बात कही तो मैंने इसका ब्यौरा जानने की कोशिश नहीं की। प्रयोजन भी क्या है? आपके भाई के प्रति मेरे मन में जो गौरव रहा है वह यह बात सुनकर दुगुना-चौगुना हो गया।' 'ऐसे भाई की बहिन मैं भी भाग्यशालिनी हूँ।' 74 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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