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________________ “मैं सब-कुछ नहीं बता सकता। कुछ बाते राजनीति की होती हैं, उन सबके . विषय में स्त्रियों को बताने का विधान नहीं है। इसलिए तुम्हारे और युवरानी जी के बीच क्या बातें हुईं, सो बताओ। उसी विषय पर यदि युवराज से मेरी बातें हुई हांगी तो वह सब मैं बता दूंगा।" ___"आप पहले मेरे ही मुँह से कहलवाना चाहते हैं न? अच्छी बात है। मेरी बेटियों का भविष्य मेरे लिए प्रधान है। पहले मैं ही कहूंगी। जो भी बातें यहाँ हुई हू-ब-हू बताऊँगी। ओर फिर आप ही बताएँ, क्या करना है। मेरे पहुँचने पर युवरानी ने बड़े हर्ष के साथ मेरा स्वागत किया और कहा, 'आइए दण्डनायिका जी, बहुत दिनों से दिखी नहीं, सो कहलवा भेजा। आज ही आ गयौं, बहुत खुशी हुई। बैंठिए। 'मैं बैठ गयी और बोली, 'मालिक ने पूछा कि राजपहल से बुलावा आया है, कब चलेंगे? मैंने कहा, जब राजमहल से बुलावा आया, तो सोचना क्या? आज हीं चलें। घर से निकलते समय याद आया कि राजकुमार जी का जन्मदिन है। हमारी तरफ़ से उनके लिए यह छोटी-सी भेंट स्वीकार करें। मैंने वह भेंट उनके सामने रख दी। ___'युवराज की अस्वस्थता के कारण हमने किसी को खबर नहीं दी। आप लोग आज ही आएंगे इस बात की हमें कोई उम्मीद भी नहीं थी। फिर भी आप आये, अच्छा हुआ। आप लोगों की राजपरिवार के साथ आत्मीयता सदा खुले दिल से हो, यही हमारी इच्छा रहती है'-इतना कहकर उन्होंने वह भेंट लेकर पास की एक चौकी पर थाली में रख दी। ___'राजकुमार...' मैं कह रही थी कि युवरानी जी बीच में बोल उठी, वे अभी अपनी पढ़ाई में लगे हैं और आपकी बेटियाँ भी वहीं हैं। बाद में यह उसे दे दूंगी। ठीक है न? या फिर आप ही उसके हाथ में देना चाहेंगी?' 'ऐसा कुछ नहीं। यों ही देखने की इच्छा हुई' मैंने कहा । तब तक मेरे मन में यह खटक रहा था कि आखिर बच्चियों को मेरे साथ भला क्यों नहीं आने दिया। लेकिन तब मुझे लगा कि यह अच्छा ही हुआ। 'अगर आप चाहती हों तो कहिए, बुलवा लेती हूँ!' युवरानी ने कहा। 'नहीं'-मैंने कहा। बाद में मैंने युवराज के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में पूछताछ की, 'सुना कि सिलहार के एक वैद्यजी आये हैं। आजकल उन्हीं की चिकित्सा चल रही है। मुझे यह बात मालूम ही नहीं थी। क्या सिलहार के वैद्यजी चालुक्य चक्रवर्तिनी पिरियरसी जी के मायके की तरफ़ के हैं?' 'हाँ ।' उन्होंने कहा। पहमहादेवी शान्तला : माग दो :: 23
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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