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________________ तो प्रभ के व्यक्तित्व पर बट्टा लग सकता है। लेकिन ऐसा विचार करना प्रभु . के लिए उचित नहीं है, क्योंकि प्रभु की वचन-निष्ठा को साम्राज्य की सारी प्रजा अच्छी तरह जानती है। महाराजा और प्रजाजन की इच्छा है तो ऐसे दबाव को भी शिरोधार्य कर स्वीकृति दें, वह प्रभु की उदारता ही होगी। इसीलिए प्रभु इस पर पनविचार करें-यही हमारी प्रार्थना है।" "पहले इतना तो हो कि हम स्वस्थ होकर चलने-फिरने योग्य हो लें, फिर बाद में यह सब सोचेंगे।" कहकर प्रभु बात टालकर घण्टी बजाकर बोले, "अच्छा प्रधानजीं।" सेवक ने आकर परदा एक ओर सरका दिया। प्रधान गंगगन बाहर चले आए। उनके मन में कुह विचार उठे। सोचने लगे-पहली बार जब अंजन के बारे में प्रभु की चर्चा करनी थी तो गजकभार चल्लालदेव को प्रभु ने अपने साथ रखा था। और जब उसका परिणाम जानने ६ उ.वार : गो कार को नहीं बुलवाया गया इसका क्या कारण हो सकता है? पद्मला को वढू बना लेने की प्रभु की इच्छा नहीं है क्या? वह तो सब जानते हैं कि राजकगार पाला का चाहते हैं। तो क्या प्रभु राजकुमार को इस ओर से हटा लेना चाहते हैं? यदि ऐसा कर गया तो उस लड़की के पविाय का क्या होगा? मेरी बहिन की मलबाजी और विपरीत मति के कारण सामानी से बन सकनेवाला काम बांटाल में पढ़ गया है। अव दण्डनायक जी और हिन को बुलाने का उद्देश्य शायद इस विश्य में स्पष्ट सूचना देने के लिए हो है। अब इसमें भेरा हस्तक्षेप करना ठीक नहीं। आगे यह वात कौन-सा रूप ले लेती है, इस जानकर ही कुछ सोचा-समझा जा सकता है। इतना तो ग्याप्ट है कि प्रभु प्रसन्न नहीं हैं। बेचारे दण्डनायक जी बड़ी सन्दिग्ध स्थिति में पड़ गये हैं। स्त्रियों का स्वार्थ, उनकी असूया, जल्दबाजी आदि के कारण क्या सब हो जाता है-यह जान पाना दुस्साध्य हैं। इन्हीं सब बातों पर साचते-विचारते प्रधानजी अपने घर पहंचे। और फिर युवराज के बुलावे की सूचना दण्डनायक जी के घर भिजवा दी। दण्डनायक सम्पती ने. फारसत से आने की सूचना मिलने पर था. खबर पाते ही तुरन्त राजमहल जाने का निश्चय कर लिया। उन्हें वह आशंका भी नहीं हुई कि अमावस्या की रात का वह सारा वृत्तान्त प्रधानजी को और चवगल को मालूम सा गया । वामशक्ति पण्डित को जो देश निकाल का दण्ड मिन्ना था, उमकी भी 66 :: पपहाटेगी शान्ता : भाग दा
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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