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हैं, 'जल्दी ही युवराज को समझा-बुझाकर पट्टाभिषेक करवाएं।' ::
"उन्हें भय है कि कहीं मैं उनसे रहले न चल बसू। ऐसा हो भी सकता है। हमें भी कभी-कभी यही लगने लगता है। पता नहीं हम इस सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, आकाश आदि को फिर कभी देख पाएंगे या नहीं। युवरानी भी के धीरज वधाने पर हमें अपनी बातों पर ही हंसी आ गयी। परन्तु इतना तो सच है कि गत अमावस्या की रात को हमें जो तकलीफ़ हुई उसका वर्णन हम कर ही नहीं सकते। अब कुछ मानकिति पितः स है, कुछ साल गिरी हैं।''
__वास्तव में राज्य की सम्पूर्ण प्रजा प्रभु के स्वास्थ्य के लिए बहुत अधीर हो रही है। ऐसे सन्दर्भ में आप महाराज के अभीष्ट को पूरा कर देंगे तो वे भी नुप्त
होंगे।"
"इस महान पोसल वंश के गौरव को हम कलाकत नहीं करना चाहेंगे।"
“किसी भी समय इस तरह का नियम नहीं रहा है, प्रभो। पगणकाल में भी पत्र का पट्टाभिषेक करके दश होनेवाले अनेक महापुरुषों के नाम चाहेंगे तो निवेदन कर सकता हूँ। प्रभु स्वीकार करके महाराज के मन को सन्तुष्ट करें-द्वार-बार विनती करता हूँ।''
"यह निश्चय चर्चा या किसी दवाव से बदलनवाला नहीं, प्रधानजी। हमाग निर्णय अटल हैं।"
"तो मतलब यह हुआ कि प्रभु ने हमको क्षमा नहीं किया। जाने-अनजाने अपनी एक दिन की ग़लती से हमें महासन्निधान की चिन्ताग्रस्त देखना पड़ रहा हैं। आप हमें क्षमा करेंगे और उदारता दिखाएँगे-यही हमारा विश्वास था। प्रभु का चित्त प्रसन्न नहीं हुआ, हमारा दुर्भाग्य है।''
"आपने गलती की हो तो क्षमा करने का प्रश्न उठ सकता है। पर, उस दिन आपने और दण्डनायक जी ने हमारी आँखें खोल दी। हम आपके ऋणी हैं। चिण्णम दण्डनाथ जी ने कुछ फूहड़पन अवश्य दिखाया। उन्हें अधिक व्यामोह जो है इसलिए उनके इस व्यामोह के कारण कभी-कभी राजनीतिक जिज्ञासा उनके दिमाग़ तक नहीं पहुंच पाती। खैर इस बात को यहीं छोड़ दीजिए। आपके चित्त को इस प्रसंग को लेकर अब और कष्ट न हो, इसलिए हम स्वयं महासन्निधान से प्रार्थना करेंगे। ठीक है न?"
"अगर आप पट्टाभिषेक के लिए स्वीकृति देते हैं तो सभी को खुशी होगी।" ''अभी जैसे हैं वैसे ही रहने पर आप नाखुश हैं?"
"जिस सन्तोष की हम आशा करते हैं, वह यदि न मिले ता निराशा हो सकती है मगर वह असन्तोष नहीं कहलाएगा। प्रभु के मन में एक विचार आ सकता है। उस दिन 'सिंहासनारूढ़ नहीं होऊँगा' कहकर आज स्वीकार करते हैं
पट्टमहादेवी शान्नला : भाग दो :: #5