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________________ "जैसी आज्ञा ।" "उनके जाने की ख़बर मिलते ही हमें सूचित करें।" "जो आज्ञा ।" "अच्छा" कहकर प्रभु ने घण्टी बजायी । डारपाल ने परदा उठाया। गंगराज दुबारा प्रणाम कर चले गये । ने बल्लाल बैठा ही रहा । प्रभु एरेयंग भी मौन बैठे रहे। कुछ क्षण वाद प्रभु ही कहा, "अप्पाजी, ये सब बातें तुमको मालूम होनी चाहिए। कल तुम सिंहासन पर बैठनेवाले हो । कौन कैसे हैं, किस पर विश्वास रखना चाहिए, किस पर नहीं - इन बातों पर तुम्हें एक निश्चित निर्णय कर लेना चाहिए।" "गुरुजी ने आचार-व्यवहार, देवी शक्ति आदि विषयों पर चर्चा करते समय बताया था कि वे वामाचारी समाज को हानि पहुँचाने वाले हैं। मुझे मालूम ही नहीं था कि ऐसे लोग हमारी इस राजधानी में भी हैं। सबसे बढ़कर आश्चर्य इस बात का है कि हमारे महादण्डनायक के परिवार का सम्बन्ध ऐसे लोगों के साथ है।" "तुम्हारे लिए आश्चर्य होना सहज है । परन्तु तुम अभी से इस विषय में अपना दिमाग खराब न करो। उनके यहाँ जब कभी जाओ तो इस विषय पर बाल तक न करना प्रधानजी स्वयं इस सम्बन्ध में आवश्यक तहकीकात करेंगे। उसके बाद ही सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट होगी। प्रधानजी की बातों से इतना तो स्पष्ट है ही कि टण्डनायक जी को इस दिशा में कोई रुचि नहीं। उनके घर में उनकी पत्नी की ही इसमें रुचि है - परन्तु यह मालूम होने पर भी उनके मानसिक कष्ट की जानकारी हुए बिना कुछ निर्णय नहीं लिया जा सकता। चूँकि तुम्हें इस घराने से लगाव है, हमें बहुत सहनशीलता से काम लेना पड़ रहा है। इसलिए तुम्हारा सहयोग बहुत अपेक्षित है। जब तक हम फिर से न कहें तब तक तुम्हारा उस घराने में किसी से न मिलना हो अच्छा है। अचानक यदि भेंट हो भी जाय तो औपचारिक ढंग से दो-चार बातें कर लेना इससे अधिक कुछ नहीं समझे!" प्रभु ने कहा । "ऐसा ही होगा, माँ को यह बात मालूम है?" "नहीं, न मालूम होना ही फ़िलहाल अच्छा है। अभी तो यह बात तुम्हें, हमें और प्रधानजी को ही मालूम है ।" "खबर लानेवाले गुप्तचर..." "उनके बारे में शंका करने की जरूरत नहीं। उनके जरिए बात दूसरे किसी के पास नहीं जाएगी । यो खबर उनके मुँह से निकल जाएगी तो वे उस काम के लिए अयोग्य हो जाएँगे। इसलिए उस सम्बन्ध में तुम्हें सोचने की जरूरत नहीं । हमारे गुप्तचर विश्वासपात्र हैं। अब जाओ तुम अपना काम करो। तुम्हारी माँ bu :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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